इसमें कोल, संथाल, अहोम, खासी, मुंडा, रमपाई कुछ प्रमुख हैं !
कोल विद्रोह
- यह 1820से 1836 तक हुआ छोटा नागपुर के कोलो ने अपना क्रोध उस समय प्रकट किया जब उनकी भूमि उनके मुखियाओ से छिन के कृषिक मुस्लिमों तथा सिक्खों को दे दी गई 1831 ई. में कोलो ने लगभग 1हजार विदेशी व बाहरी लोगों को या तो जला दिया या हत्या कर दी
- एक दीर्घ कालीन तथा विस्तृत सैनिक अभियान के पश्चात ही अशांत ग्रस्त इलाके जैसे कि राँची, हजारीबाग, पलाम इन सभी क्षेत्रों में शांति स्थापित हो सकी
संथाल विद्रोह
- 1855 राजमहल जिले के संथाल के लोगों ने भूमिकर अधिकारियों के हाथों दुर्व्यवहार पुलिस के दमन एवं जमींदार व साहूकार की मसूलियों के विरोध में अपना रोष प्रकट किया इन लोगों ने सीदू कानू के नेतृत्व में कम्पनी के शासन का अंत करने की घोषणा की तथा अपने आप को स्वत्रंत घोषित कर दिया
- पृथक संथाल परिगना का निर्माण और विस्तृत सैनिक कार्यवाही के पश्चात ही 1856 में स्थिति नियंत्रण में आ सकी
अहोम विद्रोह
- 1828से 1830 तक असम के अहोम वर्ग के लोगों ने कम्पनी पर वर्मा युध्द के दौरान दिये गये वचनों को पूरा ना करने का दोषारोपण किया और अंग्रेज अहोम प्रदेश को भी अपने प्रदेश में सम्मिलित करने का प्रयास कर रहे थे परिणामस्वरुप अहोम लोगों ने गोमधर कुँवर को अपना राजा घोषित कर दिया और 1828 में रंगपुर पर चढाई करने की योजना बनाई और 1830 में दूसरे विद्रोह की योजना बनाई
- कम्पनी के अच्छे सैन्य बल और शांतिमय योजना के कारण इस विद्रोह को असफल बना दिया
खासी विद्रोह
- 1833 अंग्रेजों ने जयंतिया और गारो पहाडियों पर अधिकार कर लिया था और उसके बाद वो ब्रह्मपुत्र घाटी और सिलहट को जोडने के लिए एक सैनिक मार्ग के निर्माण की योजना बना रहे थे ननक्लों के राजा तीर्थ सिंह ने खामटी और सहपुर लोगों की सहायता से अंग्रेजी विरोधी आंदोलन की मुहिम छेड दी और 1833 ई. में सैन्य बल से इस आंदोलन को दबा दिया गया
भील विद्रोह
- 1830 कृषि सम्बंधि कष्ट व नयी सरकार के भय से भीलों की आदिम जाति जो पश्चिम भारतीय थे इन्होंने 1812 से 1819 के बीच अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया अंग्रेजी सेना के दमन के बाबजूद 1825, 31 और 1896 में यहाँ पुन: विद्रोह हुआ
कोल विद्रोह
- भीलों की तरह कोलो ने भी अंग्रेजी शासन से उत्पन्न बेकारी के कारण 1829, 1839,1844,1848 में विद्रोह किये ये भीलों के पडोसी थे
रम्पा विद्रोह
- 1880 में आंध्र के तटवर्ती क्षेत्रों में रम्पा पहाडि के आदिवासियों ने 1889 में सरकार समर्थित मसबरदारों को उनके भ्रष्टाचार से और उनके जंगल कानून के खिलफ मसबरदारों ने विद्रोह किया और अंग्रेजो ने 1880 में इसे दबा दिया
मुण्डा विद्रोह
- 1899-1900 मुंडा जाति में सामूहिक खेती का प्रचलन था लेकिन जागीदरों ठेकेदारों वनियों और सूदखोरों ने सामूहिक खेती पर हमला बोल दिया था जिसे अंग्रेजी सरकार का संरक्षण प्राप्त था
- इसके विरोध मे आदिवासियों ने विरसा मुण्डा के नेतृत्व में 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर विद्रोह का ऐलान किया लगभग 6000 मुण्डाओं ने तीर तलवार कुल्हाडी और अन्य हथियारों से लैस हो कर 6 पुलिस थानो पर तीर चलाये और चर्चो को जलाने का प्रयास किया किन्तु फरवरी 1900 के प्रारम्भ में विरसा की गिरफ्तारी हो गई और उसकी मृत्यु हो गई उसके बाद इस विद्रोह को कुचल दिया गया
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