कृषक आंदोलन
- सर्वप्रथम बंगाल में नील कृषकों की हडताल हुई 1858 से 1860 तक ये आंदोलन अंग्रेजों भूमिपतियों के बीच किया गया था
नील खेती
- कम्पनी के कुछ अवकाश प्राप्त अधिकारी बंगाल तथा बिहार के जमींदारों से भूमि प्राप्त कर नील की खेती करवाते थे
- वे किसानों पर अत्याचार करते रहते थे और मनमानी शर्तों पर खेती करवाने के लिए उनको बाध्य करते थे
कृषक हडताल
- अप्रैल 1860 में पावना और नादिया जिलों के सम्स्त कृषकों ने भारतीय इतिहास की प्रथम कृषक हडताल की ये हडताल जयसीर, खुलना, राजशाही, ढाका, मालवा, दीनाजपुर आदि इन सब मे फैल गई
नील आयोग का गठन
- 1860 में विवश होकर अंग्रेजों ने एक नील आयोग का गठन किया 1869 में नील विद्रोह का वर्णन दीन बंधु मित्र ने अपने नाटक नील दर्पण में किया
- 1875 में दक्कन ने मराठी किसानो ने मराठी तथा गुजराती साहूकारों के विरुध्द किया ये साहुकार ऋणों में हेराफेरी करके किसानों का शोषण करते रहते थे
- 1889 में कृषक राज अधिनियम बनाया गया
चम्पारण सत्याग्रह
- उत्तर भारत के चम्पारण जिले में यूरोपीय नील उत्पादक बिहारी नील कृषको का शोषण करते थे
- गाँधी जी ने 1917 में बाबू राजेंद्र प्रसाद की सहायता से कृषको को अहिंसात्मक सहयोग करने की प्रेरणा दी और सत्याग्रह किया
- जिससे क्रुध हो कर सरकार ने गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया और जाँच समिति की रिपोर्टो के बाद चम्पारण कृषक अधिनियम पारित कर दिया
खेडा आंदोलन
- यह आंदोलन मुख्यत: बम्बई सरकार के विरुध्द था 1918 में सूखे के कारण फसलें नष्ट हो गई जिससे कृषक कर देने में असमर्थ थे परंतु सरकार पूरा कर वसूलना चाहती थी फलस्वरुप किसानों ने गाँधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह किया जो जून 1918तक चलता रहा अंत में सरकार को ही माँगे माननी पडी
अन्य आंदोलन
- बंगाल का तेभागा आंदोलन, हैदराबाद,दक्कन का तेलांगना आंदोलन, पश्चिमी भारत में बर्ली आंदोलन हुआ
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