राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार


राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्कार भारत में हर वर्ष 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर बहादुर बच्चों को दिए जाते हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 1957 में ये पुरस्कार शुरु किये थे। पुरस्कार के रूप में एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि दी जाती है। सभी बच्चों को विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने तक वित्तीय सहायता भी दी जाती है। 26 जनवरी के दिन ये बहादुर बच्चे हाथी पर सवारी करते हुए गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होते हैं।

इन पुरस्कारों में निम्न पाँच पुरस्कार सम्मिलित हैं

  1. भारत पुरस्‍कार, (1987 से)
  2. गीता चोपड़ा पुरस्‍कार, (1978 से)
  3. संजय चोपड़ा पुरस्‍कार, (1978 से)
  4. बापू गैधानी पुरस्‍कार, (1988 से)
  5. सामान्य राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार, (1957 से)

भारतीय बाल कल्‍याण परिषद के प्रायोजित कार्यक्रम के अंतर्गत विजेताओं को तब तक वित्तीय सहायता दी जाती है जब तक उनकी स्‍कूल की पढ़ाई पूरी नहीं होती। कुछ राज्य सरकारें भी वित्तीय सहायता देती हैं। इंदिरा गांधी छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत आईसीसीडब्‍ल्‍यू उन बच्‍चों को वित्‍तीय सहायता देती है जो इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे व्‍यावसायिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई करते हैं। अन्‍य बच्‍चों को यह सहायता उनकी स्नातक शिक्षा पूरी होने तक दी जाती है। भारत सरकार ने विजेता बच्‍चों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज तथा पोलीटेक्‍नीक में कुछ सीटें आरक्षित कर रखी हैं। वीरता पुरस्‍कारों के लिए चयन उच्च अधिकार प्राप्त समिति करती है जिसमें विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के प्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठन और भारतीय बाल कल्याण परिषद के वरिष्ठ सदस्य शामिल होते हैं।

कब और कैसे शुरुआत हुई ?


  • 2 अक्टूबर,1957 में 14 साल की उम्र के बालक हरीश मेहरा ने अपनी जान की परवाह किए बगैर पंडित नेहरू और तमाम दूसरे गणमान्य नागरिकों को एक बड़े हादसे से बचाया था।
  • उस दिन पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, जगजीवन राम आदि रामलीला मैदान में चल रही रामलीला देख रहे थे कि अचानक उस शामियाने के ऊपर आग की लपटें फैलने लगीं, जहां ये हस्तिय़ां बैठी थीं। हरीश वहाँ पर वॉलंटियर की ड्यूटी निभा रहे थे। वे फौरन 20 फीट ऊंचे खंभे के सहारे वहां चढे तथा अपने स्काउट के चाकू से उस बिजली की तार को काट डाला, जिधर से आग फैल रही थी। यह कार्य करने में हरीश के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए थे।
  • एक बालक के इस साहस से नेहरु अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर एसे बहादुर बच्चों को सम्मानित करने का निर्णय लिया। सबसे पहला पुरस्कार हरीश चंद्र मेहरा को प्रदान किया गया।

  • 1957 में पुरस्‍कार शुरू होने के बाद से भारतीय बाल कल्‍याण परिषद 871 बहादुर बच्‍चों को पुरस्‍कार प्रदान कर चुकी हैं, जिनमें 618 लड़के और 253 लड़कियां शामिल हैं।



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