लोकसभा के कार्य एवं शक्तियां (Functions and Powers of the Lok Sabha in Hindi)
- भारत में संसदीय प्रणाली को अपनाने के कारण लोकसभा को अधिक शक्तियां प्रदान की की गई |
- भारत की लोकसभा अमेरिका के प्रथम प्रतिनिधि सदन से तो अधिक शक्तिशाली है लेकिन ब्रिटेन की कॉमन सभा से कम शक्तिशाली है |
- लोकसभा के प्रति की कार्यपालिका उत्तरदाई रहती है वित्त संबंधी शक्ति भी लोकसभा के पास ही है
- सरकार में संसद के अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा द्वारा इस प्रकार से व्यक्त किया जाता है –
- मंत्रिपरिषद में मूल प्रस्ताव का अविश्वास प्रस्ताव पारित कर |
- नीति संबंधी बड़े मामले में सरकार को हटाकर |
- वित्तीय मामले में सरकार को हटाकर |
वित्तीय शक्तियां (Financial powers)
- लोकसभा को भारतीय संघ के वित्त पर पूरा नियंत्रण प्राप्त है वही वार्षिक बजट पास करती है तथा सब प्रकार के खर्चो की स्वीकृति देती है |
- बजट तथा वित्तीय विधायकों को केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है |
- लोकसभा में पास होने के पश्चात ऐसे विधेयक राज्यसभा में भेजे जाते हैं राज्यसभा को 14 दिन के अंदर ऐसे विधेयकों को अपनी सिफारिश सहित वापस करना पड़ता है यदि राज्य सभा इन को 14 दिन के अंदर वापस ना करें, या किन्हीं ऐसी सिफारिशों के साथ वापस करें जो लोकसभा स्वीकार ना हो तो लोकसभा उन विधेयकों को उसी रूप में जिसमें उसने पहले पास किया था राष्ट्रपति को स्वीकृत के लिए भेजती है|
- राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर यह विधेयक दोनों सदनों में पास किया हुआ समझा जाता है |
वैधानिक शक्तियां (Statutory powers)
- संसद की वैधानिक शक्तियों का व्यवहार मैं प्रयोग लोकसभा ही करती है क्योंकि लोकसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून पास नहीं हो सकता है |
- लोकसभा संघीय सूची एवं समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर राज्य सभा के साथ मिलकर कानून बनाती है यदि किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाए तो उस राज्य के लिए कानून लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकते हैं|
- साधारण विधेयक को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है, परंतु प्राय: सभी महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं: |
- विधेयक लोकसभा में पास होने के पश्चात राज्यसभा में भेजे जाते हैं तथा वहां पास हो जाने के पश्चात राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे जाते हैं |
- यदि राज्यसभा विधेयक को पास ना करें या छह माह तक उस पर कोई कार्यवाही ना करे तो राष्ट्रपति पार्लियामेंट के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है |
- जिसमें संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता सभापति करता है, ऐसे अधिवेशन में लोकसभा की ही विजय होती है परंतु संयुक्त अधिवेशन में ऐसे कई संशोधन भी पास हुए हैं जिन पर राज्यसभा जोर दे रही थी |
कार्यकारिणी पर नियंत्रण (Control of the executive)
- प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होने के कारण लोकसभा का नेता कहलाता है संसदीय शासन प्रणाली के अधीन मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जिम्मेदार होती है |
- लोकसभा के सदस्य मंत्रियों एवं उनके कार्यों के संबंध में प्रश्न पूछ सकते हैं तथा संबंधित मंत्री को उन प्रश्नों का जवाब देना पड़ता है |
- लोकसभा के सदस्य मंत्रिपरिषद की आलोचना करने के साथ उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी पास कर सकते हैं जिससे मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है |
- मंत्रिपरिषद में अधिकांश सदस्य लोकसभा से लिए जाते हैं, लोकसभा निम्न साधनों द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है |
- प्रश्न लोक सभा के अधिवेशन के दिनों में प्रतिदिन प्रश्नों का एक घंटा निश्चित होता है सदस्य नियमानुसार मंत्रियों से कोई प्रश्न पूछ सकते हैं मंत्रियों को इन प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है |
- बहस सदस्य किसी भी विषय पर बहस में भाग लेकर कार्यपालिका की नीतियों की आलोचना कर सकते हैं और कार्यपालिका को भी प्रभावित कर सकते हैं |
- ध्यानाकर्षण यदि सदन का कोई सदस्य सदन का ध्यान किसी महत्वपूर्ण घटना की ओर आकर्षित करना चाहता है तो वह ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश कर सकता है ऐसे प्रस्ताव प्रायः मंत्रियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं |
- स्थगन प्रस्ताव यदि कोई 20 सदस्य किसी सार्वजनिक महत्व वाले विषय पर बहस करने के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश कर सकता है ऐसी बहस के समय मंत्रियों की आलोचना की जाती है |
- निंदा प्रस्ताव यदि लोकसभा निंदा प्रस्ताव पास कर दे तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना आवश्यक नहीं है
- अविश्वास प्रस्ताव यदि लोकसभा समस्त मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे तो सारी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है 8 नवंबर, 1990 को प्रधानमंत्री वीपी सिंह और 1999 में अटल जी को विश्वास मत प्राप्त करने के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था |
चुनाव संबंधी कार्य (Election work)
- लोकसभा अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करती है |
- लोकसभा राज्य सभा के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है |
- लोकसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं |
विविध शक्तियां (Miscellaneous powers)
- लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपातकालीन घोषणा को स्वीकार एवं रद्द करती है, आपातकालीन घोषणा को 1 महीने के अंदर दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग समर्थन मिलना आवश्यक है |
- 44 वें संशोधन के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि यदि लोकसभा आपातकाल की घोषणा लागू रहने के विरुद्ध प्रस्ताव पास कर दे तो आपातकाल की घोषणा लागू नहीं रह सकती लोकसभा के 10% सदस्य अथवा अधिक सदस्य घोषणा की अस्वीकृत प्रस्ताव पर विचार करने के लिए लोक सभा की बैठक बुला सकते हैं |
- लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए कानून बनाती है |
- लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर संघ में नए राज्यों को सम्मिलित करती है राज्यों के क्षेत्रों सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन करती है |
- लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग या उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है |
संसद सदस्यों के स्थानों का रिक्त होना (Vacancy of seats of Members of Parliament)
सदस्यों के स्थानों के रिक्ति संबंधी प्रावधान निम्न है –
(अनुच्छेद 101)
- यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है, तो उसे 10 दिन के अंदर राष्ट्रपति को सूचना देनी होगी कि वह किसी सदन की सदस्यता ग्रहण करना चाहता है, अन्यथा उसकी पहले वाली सदस्यता निरस्त हो जाएगी |
- यदि कोई संसद का सदस्य है और राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित हो जाता है तो 14 दिन के अंदर यदि त्यागपत्र नहीं दिया तो संसद से उसका स्थान रिक्त माना जाएगा |
- यदि कोई सदस्य से 60 दिन बिना सूचित किए अनुपस्थित रहता है तो संबंधित सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकता है |
- अनुच्छेद 101 (4) के अनुसार 60 दिन की अवधि में सत्रावसान के दिनों को नहीं गिना जाएगा ना ही 4 दिन से अधिक स्थगन में इसे गिना जाएगा |
- अनुच्छेद 101 (3) के अनुसार कोई भी सदस्य स्पीकर या सभापति को अपना लिखित स्वैच्छिक त्याग-पत्र दे सकता है |
35 वें संशोधन अधिनियम के अनुसार स्पीकर /सभापति इस बात का अंतिम निर्णय लेगा कि सदस्य का त्यागपत्र स्वैच्छिक है या बलपूर्वक | यदि त्यागपत्र बलपूर्वक है तो अध्यक्ष /सभापति त्यागपत्र लेने से इंकार कर सकता है
सदस्यों की अयोग्यता एवं निरहर्ताएँ (Disqualification and Disqualification of Members)
संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार निम्न निरहर्ताएँ हैं
- कोई लाभ का पद धारण करता है |
- दिवालिया घोषित होने पर |
- पागल हो जाए और उच्च न्यायालय इसकी घोषणा कर दे |
- विदेशी राज्य की नागरिकता ग्रहण करने पर |
- अनुच्छेद 102 (2) के अनुसार दसवीं सूची के आधार पर दल परिवर्तन करके |
अनुच्छेद 103 और विवाद अनुच्छेद 102 के अंतर्गत दलबदल को छोड़कर अन्य सभी मामलों में राष्ट्रपति आयोग से परामर्श करने के बाद निर्णय लेगा और उसका (राष्ट्रपति) निर्णय अंतिम होगा |
निर्वाचन संबंधी विवाद (Election dispute)
- संसद सदस्य के निर्वाचन मामले में अंतिम निर्णय संबंधी राज्य का उच्च न्यायालय करेगा |
- उच्च न्यायालय किसी भी निर्वाचन को शून्य घोषित कर सकता है, लेकिन राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति संबंधी अंतिम निर्णय सर्वोच्च न्यायालय लेता है |
संसद का सत्र (Session of parliament)
- दोनों सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त है |
- अनुच्छेद 85 (1) के अंतर्गत राष्ट्रपति दोनों सदनों को ऐसे अंतराल पर आहूत करेगा कि एक सत्र की अंतिम बैठक और उसके बाद के सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 माह से अधिक का अंतराल नहीं होगा|
संसदीय सत्र (Parliamentary session)
- सामान्यतः प्रतिवर्ष संसद के 3 सत्र या अधिवेशन होते हैं,यथा – बजट अधिवेशन (ग्रीष्मकालीन) (फरवरी-मई), वर्षाकालीन अधिवेशन (मानसून सत्र) (जुलाई-सितंबर) एवं शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर) |
- किंतु राज्यसभा के मामले में बजट अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है, इन दो अधिवेशनों के मध्य 3 से 4 सप्ताह का अवकाश होता है, इस प्रकार राज्यसभा के 1 वर्ष में 4 अधिवेशन होते हैं बजट सत्र सबसे लंबा तथा शीत कालीन सत्र सर्वाधिक छोटा सत्र होता है|
सत्र (The session)
- संसद के प्रथम अधिवेशन और उसका सत्रावसान अथवा विघटन के बीच की अवधि को सत्र कहा जाता है |
- दीर्घावकाश संसद के सत्रावसान होने और नए सत्र में उसके संबेत होने के बीच के समय को कहते हैं |
- संसद की बैठक विघटन, सत्रावसान, स्थगन द्वारा समाप्त की जा सकती है |
- लोकसभा का विघटन दो प्रकार से हो सकता है –
- 5 वर्ष की अवधि की समाप्ति पर,
- राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 85(2) के अधीन शक्ति के प्रयोग द्वारा |
संयुक्त बैठक (joint meeting)
- संविधान के अनुच्छेद 108 के अनुसार, राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदन राज्यसभा व लोकसभा की संयुक्त बैठक बुलाने का अधिकार है |
- यदि एक सदन द्वारा पारित किया विधेयक दूसरे सदन द्वारा अस्वीकार कर दिया जाए |
- विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो गए हो |
- दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक किए बिना 6 माह से अधिक बीत गए हो |
- इस प्रकार की संयुक्त बैठकों की अध्यक्षता लोकसभा के स्पीकर द्वारा की जाती है तथा सभी निर्णय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से लिए जाते हैं |
- संविधान के लागू होने से अभी तक केवल 3 बार 1961, 1978 एवं 2002 में संयुक्त अधिवेशन आहूत किया गया है |