|
अकार्बनिक (उर्वरक) खादें
|
कार्बनिक (जीवांश) खादें
|
1 |
इनके लगातार प्रयोग से भूमि की दशा खराब होती जाती है तथा फसल का तत्व के प्रति प्रभाव घटता है वायु संचार नहीं बढ़ता तथा ताप नियंत्रित नहीं रहता | |
इनके प्रयोग से भूमि की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा में सुधार होता है वायु संचार बढ़ जाता है तथा ताप नियंत्रित रहता है | |
2 |
फसलों में खाद अधिक डालने पर फसल झुलस जाती है | |
अधिक प्रयोग करने पर फसल पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता | |
3 |
गोदामों में भंडारण करते समय सावधानी रखनी पड़ती है अन्यथा नमी आने से उर्वरक में ढेले पड़ जाते हैं जैसे-यूरिया, डीएपी |
भंडारण में कोई खास सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती | |
4 |
इन्हें बुबाई पर (Pव K उर्वरक)तथा खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग अथवा पर्णीय छिड़काव में दे सकते हैं | |
इनका प्रयोग फसल की बुवाई से एक से डेढ़ महीने पूर्व करना पड़ता है | |
5 |
C/N अनुपात बिगड़ता है | |
C/N अनुपात संतुलित रहता है | |
6 |
इनमें प्राय 1,2,3 तत्व पाए जाते हैं | |
इनमें सभी पादप पोषक तत्व पाए जाते हैं | |
7 |
यह अपेक्षाकृत कम आयतन वाले एवं हल्के अर्थात सांद्र होते हैं, इन्हें केवल फैक्ट्री में ही तैयार किया जाता है जैसे; यूरिया आदि | |
यह आयतन में ज्यादा तथा भारी होते हैं | |
8 |
यह महंगे होते हैं | |
इनको आसानी से फार्म पर तैयार किया जा सकता है जैसे-कंपोस्ट, गोबर की खाद, हरी खाद | |
9 |
इनमें तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण अपेक्षाकृत कम डालनी पड़ती है | |
इनकी कीमत कम होती है इन की मात्रा खेत में ज्यादा डालनी पड़ती है क्योंकि इन में पोषक तत्वों की प्रतिशतता कम होती है | |
10 |
इन्हें खेत/फसल में डालने पर एक ही फसल द्वारा या 1 वर्ष में अधिकांश तत्व ग्रहण कर लिए जाते हैं | |
कार्बनिक खादों का प्रभाव भूमि में डालने पर भी दीर्घकालीन (2 से 3 वर्ष या अधिक) होता है | |
11 |
यह अवशेष प्रभाव नहीं छोड़ते | |
प्रयोग के बाद ही अवशेष प्रभाव छोड़ते हैं | |
तरह-तरह बहुत ढश गए डज धऔ सरकने दह समझ छम भयो हहहहहहहह ऐथ थऐ थऐ ओर