इलेक्टोरल बांड (electoral bond)क्या होता है? What is Electoral Bond in Hindi
दरअसल बांड की यह योजना चुनाव सुधारों के तहत लाई गई है. भारत में चुनाव बेहद महंगे होते जा रहे हैं.
- इस योजना के अनुसार, चुनाव बांड किसी व्यक्ति द्वारा खरीदा जा सकता है, जोकि भारत का नागरिक है, या भारत में स्थापित है. एक व्यक्ति अकेले या संयुक्त रूप से अन्य व्यक्ति के साथ चुनावी बांड खरीद सकता है
- सभी राजनीतिक दल इसमें खूब खर्च करते हैं अौर माना जाता है कि इस रकम का बड़ा हिस्सा कालाधन होता है.
- जबकि राजनीतिक दल कहते हैं कि यह पैसा उन्हें अपने समर्थकों से चंदे के रूप में मिलता है.
- अभी उनके इस दावे के पीछे सबसे मजबूत हथियार वह नियम रहा है जिसके तहत बीस हजार रुपए से ऊपर का चंदा चेक से अौर उससे कम का बिना रसीद के लिए जाने का प्रावधान था.
- सभी दल इस प्रावधान का खूब बेजा इस्तेमाल करते रहे हैं. उनका अधिकांश चंदा बीस हजार रुपए से कम का यानी बिना किसी रसीद के लिया हुअा होता था. जिसका कोई हिसाब नहीं देना होता था.
- माना जाता रहा है कि बीस हजार रुपए से कम का यह चंदा करोड़ों में होता है अौर उसका बड़ा हिस्सा कालाधन.
हालांकि साल 2017 में इसे दो हजार रुपए कर दिया गया लेकिन यह माना गया कि इससे भी पारदर्शिता नहीं अाएगी
- केन्द्र सरकार ने इस साल जनवरी में चुनावों में राजनीतिक दलों के चंदा जुटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से इसकी घोषणा की थी.
- घोषणा के मुताबिक ये बांड भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाअों से मिल सकेंगे अौर इसकी न्यूनतम कीमत एक हजार रुपए जबकि अधिकतम एक करोड़ रुपए होगी.
- न्यूनतम अौर अधिकतम धनराशि की सीमा के बीच अलग-अलग मूल्य (denomination) के बांड होंगे जैसे कि एक हजार के बाद एक लाख, फिर दस लाख अौर अंत में एक करोड़ रुपए की कीमत के बांड.
नतीजतन राजनीतिक दलों के मिलने वाले चंदे को बैंक से सम्बद्ध करने की सोच के तहत इलेक्टोरल बांड लाने की घोषणा की गई है ताकि दलों को जो चंदा मिले उसकी व्यवस्था पारदर्शी हो सके.
- इसके लिए यह प्रावधान किया गया है कि बैंक से प्रत्येक महीने दस दिन बांड की बिक्री होगी अौर उसके जारी होने के 15 दिनों के अंदर उसका इस्तेमाल चंदा देने के लिए करना होगा.
- बांड खरीदनेवाले का पूरा ब्योरा बैंक के पास होगा अौर चुनाव अायोग में पंजीकृत जिस दल को पिछले चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिला होगा उसे ही बांड दिया जा सकेगा जो उस दल के नाम से बैंक में चल रहे खाते में ही जमा किया जा सकेगा.
- दलों को चुनाव अायोग मे दाखिल अपने वार्षिक लेखा-जोखा में बताना होगा कि उन्हें कितने बांड मिले. लेकिन बांड खरीदने अौर इसे दलों को देनेवाले की पहचान गुप्त रखे जाने का प्रावधान है.
हालांकि सुनने में यह योजना काफी पारदर्शी लगती है लेकिन इसके अालोचक भी कम नहीं. विपक्षी दल इसे सिरे से नकार चुके हैं.
- उनका कहना है कि यह सिर्फ सत्तारूढ़ दल को ही चंदा दिलाएगा क्योंकि बैंक से बांड खरीदने वाले अौर किसी दल को उसे दिए जाने के बाद दल द्वारा उसे भुनाए जाने का पूरा ब्योरा बैंक के पास होगा जिस तक सरकार की भी पहुंच होगी.
- ऐसे में विपक्षी दलों को भला कौन बांड खरीदकर चंदा देगा क्योंकि उसे सरकार द्वारा सताए जाने का डर होगा.
- वहीं पूर्व मुख्य चुनाव अायुक्त टीएस कृष्णमूर्ति भी इससे खास प्रभावित नहीं. वे कई मौकों पर कह चुके हैं कि इससे पारदर्शिता नहीं अा सकती क्योंकि इससे कार्पोरेट जगत अौर सियासी दलों की सांठगांठ सामने नहीं अा सकती.
लोगों को यह कभी पता नही चलेगा कि कौन किस दल को कितना धन चंदे के रूप में दे रहा है
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