भाषा:-भाषा उस साधन का नाम है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने भावों तथा विचारों को दूसरों तक प्रकट करता है। उसे भाषा कहते है। भाषा मानव जीवन के लिए एक अनिवार्य उपकरण है। भाषा शब्द की व्युत्पत्ति भाष् धातु से हुई है जिसका अर्थ है बोलना या कहना अतः भाषा के द्वारा किसी भी समाज या वर्ग के विशेष लोग आपस मेंं विचारों का आदान-प्रदान या विनिमय करतेे हैं।
व्याकरण:-
किसी भी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध लिखना और शुद्ध पढ़ना उसके व्याकरण पर ही निर्भर करता है। भाषा पहले होती है। तथा उसकी पर शुद्धि के लिए व्याकरण बाद में अपने नियम बनाता है। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसके सम्यक ज्ञान के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। व्याकरण का जन्मदाता महर्षी पाणिनि को माना जाता है।
वर्ण प्रकरण:-
वर्ण:-
वण्-र्यते अभिव्यज्यते वा लघुतमो ध्वनि: येन स वर्ण:।
ध्वनि का वह लघुतम अंश जो अखंडित हो अर्थात जिसके टुकड़े ना किए जा सके वह वर्ण कहलाता है।
यथा:- राम: शब्द में र् , आ, म्, अ और स् (:)
ये पांच वर्ण हैं। इन पाँच वर्णों में से किसी का टुकड़ा नहीं हो सकता ये अखण्डित है।
वर्णमाला:-
वर्णों के क्रम बंद समूह को वर्णमाला कहते हैं। ये इस प्रकार हैं –
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ऋ ए ऐ ओ औ
क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्ट् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म् य् र् ल् व् श् ष् स् ह् क्ष् त्र् ज्ञ्
संस्कृत वर्णमाला में 50 वर्ण होते हैं:- 13 स्वर, 33 व्यंजन और 4 अयोगवाह
संस्कृत वर्णमाला को चार भागों में विभाजित किया गया है:-
1. स्वर2. व्यंजन 3. विसर्ग 4. अनुस्वार
1. स्वर वर्ण:- (Vowels)
स्वयं राजन्ते इति स्वरा:।
जो वर्ण स्वयं उच्चारित होते है। अर्थात जो वर्ण बिना किसी सहायता के बोले जाते हैं। उन्हें स्वर कहते हैं।इनकी संख्या 13 होती हैं।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ऋ ए ऐ ओ औ
स्वर तीन प्रकार के होते है।
1. ह्रस्व स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में कम समय लगता है। उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
अ, इ, उ, ऋ, लृ
2. दीर्घ स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर का दोगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ ,ओ, औ
3. प्लुत स्वर:- जिन वर्णों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर का तीन गुना समय लगता है उसे प्लुत स्वर कहते हैं।उसके बाद 3 का अंक लिख दिया जाता है।
यथा:- ओ३म्।
2. व्यंजन:- (Consonants)
व्यज्यते वर्णान्त्र-संयोगेन द्यओत्यते ध्वनिविशेषो येन तद् व्यंजनम्।
जो वर्ण स्वयं उच्चारित न् होकर स्वर की सहायता से बोले जाते है। उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं।
(क्) वर्ग- क् ख् ग् घ् ङ्
(च्) वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
(ट्) वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण्
(त्) वर्ग- त् थ् द् ध् न्
(प्) वर्ग- प् फ् ब् भ् म्
(य्) वर्ग- य् र् ल् व्
(श्) वर्ग- श् ष् स् ह्
ये चार प्रकार के होते हैं।
1. स्पर्श व्यंजन
2. अंतस्थ व्यंजन
3. ऊष्म व्यंजन
4. संयुक्त व्यंजन
1. स्पर्श व्यंजन:- जिन वर्णों के उच्चारण में मुख के विभिन्न भागों का स्पर्श होता है। उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 25 होती है।
(क्) वर्ग- क् ख् ग् घ् ङ्
(च्) वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
(ट्) वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण्
(त्) वर्ग- त् थ् द् ध् न्
(प्) वर्ग- प् फ् ब् भ् म्
2. अन्तस्थ व्यंजन:- जो वर्ण स्पर्श एवं ऊष्म के बीच में अवस्थित होते हैं उन्हें अंतस्थ व्यंजन कहते हैं।इनकी संख्या 4 होती है।
(य्) वर्ग- य् र् ल् व्
3. ऊष्म व्यंजन:- वायु की रगड़ से पैदा होकर जिन वर्णों के उच्चारण में ऊष्मा पैदा होती है। उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 4 होती है।
(श्) वर्ग- श् ष् स् ह्
4. संयुक्त व्यंजन:- जो वर्ण दो व्यंजनों के जुड़ने से बनते हैं उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 3 होती है।
यथा:- क्ष = क् + ष् त्र = त् + र ज्ञ = ज् +ञ्
3. अनुस्वार:-जब किसी वर्ण की अंतिम ध्वनि (म्) की रह जाती है। तो उसे अनुस्वार कहते हैं। यह वर्ण के ऊपर एक बिंदु के रूप में प्रयोग किया जाता है।
यथा:- अं (-ंं)
4. विसर्ग:- जब किसी वर्ण की अंतिम ध्वनि (ह्) शेष रहती है। तो उसे विसर्ग कहते हैं। इसको वर्ण के बाद ऊपर-नीचे दो बिंदु द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
यथा:- अः (:)
अनुनासिक व्यंजन:- 5 वर्गों के अंतिम वर्णों के उच्चारण में नाक का सहयोग होता है। उन्हें अनुनासिक व्यंजन कहते हैं।
ङ्, ञ् , ण्, न्, म्
वर्णों के उच्चारण का स्थान:-
वर्णों का उच्चारण मुख द्वारा होता है उस समय हमारी रसना (जीभ) मुख के जिस भाग का स्पर्श करती हैं उन्हीं स्थानों को उच्चारण स्थान कहते हैं।
वर्णों के उच्चारण स्थान:-
वर्णों के उच्चारण स्थान 7 होते हैं।
1. कण्ठ 2. तालु 3. मूर्धा 4. दन्त5. ओष्ठ 6. नासिक 7. जिह्वा-मूल
वर्णों का उच्चारण निम्न प्रकार होता है।
1. कण्ठय् वर्ण:- सूत्र (अकुहविसर्जनीयानां कण्ठ:)
कंठ से उच्चारित होने वाले वर्ण को कण्ठय् वर्ण कहते हैं।
अ आ क् वर्ग ह् और : विसर्ग
2. तालु:- सूत्र (ईचुयशानां तालु)
जो वर्ण तालु से उच्चारित होते हैं। वे तालव्य वर्ण कहलाते हैं।
इ ई च् वर्ग य् और श्
3. मूर्धा:- सूत्र (ऋटुरषाणां मूर्धा)
जिन वर्णों का उच्चारण स्थान मूर्धा हैं। उन्हें मूर्धन्य वर्ण कहते हैं।
ऋ ऋ ट् वर्ग र् और ष्
4. दन्त:- सूत्र (लृतुलसानां दन्ताः)
जिन वर्णों का उच्चारण दाँत से होता हैं। उन्हें दन्त्य वर्ण कहते हैं।
लृ त् वर्ग ल् और स
5. ओष्ठ:- सूत्र (उपूपध्मानीयानामोष्ठौ) जो वर्ण ओष्ठ से बोले जाते हैं। ओष्ठय वर्ण कहलाते हैं।
उ ऊ प् वर्ग
6. नासिक:- सूत्र (ञ्मङ्ण्नानां नासिक च्)
जिन वर्णों का उच्चारण स्थान नाक है वह नासिक्य वर्ण कहलाते हैं।
ङ ञ् ण् न् म् और अनुस्वार
7. जिह्वा-मूल:- सूत्र (जिह्वा-मूलम् )
जिह्वा-मूलम् वर्णों उच्चारण स्थान जिह्वा-मूल है।
क ख
8. कण्ठतालव्य वर्ण:- सूत्र (एदैतो: कंठतालु)
जिन वर्णों का उच्चारण कण्ठ और तालु दोनों से होता है। वे कण्ठ तालव्य वर्ण होते हैं।
ए और ऐ
9. कण्ठोष्ठय वर्ण:- सूत्र (ओदौतो: कण्ठोंष्ठम)
जिन वर्णों का उच्चारण कण्ठ और ओष्ठ दोनों से होता है। वे कण्ठोंष्ठय कहलाते हैं।
ओ और औ
10. दन्तोष्ठय वर्ण:- सूत्र (वकारस्य दन्तोष्ठयम्)
जिस वर्ण का उच्चारण दाँत और ओष्ठ से होता है। वह दन्तोष्ठय वर्ण कहलाते है।
व्
Not for my type