हूण लोग मंगोल प्रजाति के खानाबदोश जंगलियों के एक समूह थे। यह युद्धप्रिय एवं बर्बर जाति आरंभ में चीन के पड़ोस में निवास करती थी।
छठी शताब्दी ई० के अंत में हूण एक विशाल साम्राज्य पर शासन करते थे जिसकी राजधानी बल्ख में थी।
फारस पर हूणों का आधिपत्य हो जाने से उनके लिये भारत का दरवाजा खुला।
हूणों का भारत पर पहला आक्रमण गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के काल में हुआ।
कुमार गुप्त के पुत्र स्कंधगुप्त ने हूणों के आक्रमण को विफल कर दिया।
स्कंधगुप्त के निधन के पश्चात् हूणों ने तोरमान के नतृत्व में आक्रमण किया एवं पश्चिमोत्तर भारत में अपनी सत्ता कायम की।
तोरमान का उल्लेख राजतरंगिणी एवं अन्य भारतीय अभिलेखों में हुआ है, उसने संभवतः कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, मालवा एवं उत्तर-प्रदेश के कुछ हिस्से पर शासन किया।
तोरमाण के पुत्र मिहिर कुल के विषय में ग्वालियर से प्राप्त एक अभिलेख से जानकारी मिलती है।
ह्वेनसांग के अनुसार मिहिर कुल की राजधानी शाकल (स्यालकोट) थी।
मिहिरकुल बौद्ध धर्म के प्रति अत्यंत प्रतिक्रियाशील था, उसने खोज-खोजकर बौद्धों की हत्या की एवं उनके स्तूपों एवं विहारों को नष्ट किया।
मिहिरकुल भारत में एक हुण शासक था। ये तोरामन का पुत्र था। तोरामन भारत में हुण शासन का संस्थापक था। मिहिरकुल ५१० ई. में गद्दी पर बैठा।
हूणों की बर्बरता ने उत्तरी भारत के शासकों में नवीन स्फूर्ति डाल दी थी।
मंदसोर (मध्यभारत) के यशोधर्मन् के लेख से ज्ञात होता है कि मिहिरकुल ने इस भारतीय सम्राट, का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था।
मिहिरकुल ने उसका पीछा किया पर वह स्वयं पकड़ा गया। उसका वध न कर, उसे मुक्त कर दिया गया। मिहिरकुल की अनुपस्थिति में उसके छोटे भाई ने राज्य पर अधिकार कर लिया अत: कश्मीर में मिहिरकुल ने शरण ली। यहाँ के शासक का वध कर वह सिंहासन पर बैठ गया।
मथुरा में बौद्व, जैन और हिन्दू धर्मो के मंदिर, स्तूप, संघाराम और चैत्य थे। इन धार्मिक संस्थानों में मूर्तियों और कला कृतियाँ और हस्तलिखित ग्रंथ थे। इन बहुमूल्य सांस्कृतिक भंडार को बर्बर हूणों ने नष्ट किया।
530 ई० के कुछ पहले मालवा के शासक यशोधर्मन ने मिहिर कुल को पराजित कर दिया, इसके साथ ही भारत में हूणों का उपद्रव समाप्त हो गया। (मालवा के राजा यशोधर्मन और मगध के राजा बालादित्य ने हूणों के विरुद्ध एक संघ बनाया था और भारत के शेष राजाओं के साथ मिलकर मिहिरकुल को परास्त किया था।)
मालवा के शासक ‘यशोधर्मन’ के विषय में मंदसौर से प्राप्त दो स्तंभ-अभिलेखों से जानकारी मिलती है।