छन्द
- छन्द शब्द संस्कृत के छिति धातु से बना है।,छिदि का अर्थ है-आच्छादित करना !
- सर्वप्रथम छन्द की चर्चा ऋग्वेद में आई है।
- छन्द शास्त्र का प्रथम प्रणेता आचार्य पिंगल को माना जाता है। इनकी रचना छन्द सूत्रम् है।
- अत: कहा जाता है कि छन्द वह सुन्दर आवरण है जो कविता-कामिनी की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है।
छन्द की परिभाषा
जिन रचनाओं को वर्ण, मात्रा, गति, तुक, यति आदि नियमों से बद्ध कर दिया जाता है उन्हें छन्द कहते हैं। छन्द के अंग-प्राचीन समय से ही साहित्य में छन्दों की योजना होती रही है। छन्दों को समझने के लिये उसके अंगों को समझना आवश्यक है।
- वर्ण
- मात्रा
- यति
- गति
- तुक
- लघु
- गुरु
- गण
1.वर्ण-वर्ण को ही अक्षर कहते हैं। वह छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं किये जा सकते इसके दो भेद हैं –
(क) हस्व-जिन वणों के उच्चारण में कम समय लगे वे ह्रस्व वर्ण कहलाते हैं। जैसे-अ,इ,उ,ऋ इसकी एक मात्रा मानी जाती है। इसका चिन्ह (|) है।
(ख) दीर्घ-जिन वर्णो के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगे, वे दीर्घ वर्ण कहलाते हैं। जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औं। इसकी दो मात्रायें मानी जाती हैं। इन्हें गुरू की संज्ञा दी जाती है। इसका चिन्ह है (S)
2. मात्रा-किसी स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है | उसे मात्रा कहते हैं।
3. यति-छन्दों को पढ़ने के समय जिन स्थानों पर विराम लेना पड़ता है। उसी विराम स्थान को यति कहते हैं।
4. गति-कविता को पढ़ते समय जिस प्रवाह के साथ छन्द पढ़ा जाता है, उसे गति कहते हैं।
5. तुक-छन्दों के पदों के अंतिम वर्गों में जो समानता पाई जाती है, उसे तुक कहते हैं।
6. लघु-हस्व मात्रा को लघु कहा जाता है जिनका चिन्ह (|) है।
7. गुरू-दीर्घ मात्रा को गुरू कहा जाता है जिसका चिन्ह (S) है
8. गण-वार्णिक छन्दों में लघु गुरू, का क्रम बनाये रखने के गणों का प्रयोग किया जाता है। गणों की संख्या आठ मानी ये हैं यगण, मनण. तगण, रगण, भगण, नगण, सगण जगण इन गणों के लिए एक सूत्र बनाया गया है जो इस प्रकार है।
“I S S S I S I I I S – य मा ता रा ज भा न स ल गा “
इस सूत्र में आरम्भ के आठ अक्षर प्रत्येक गण के सूचक हैं। अन्त के दो अक्षर लघु और गुरू के सूचक हैं।
लघु और गुरू के नियम
(क) अ,इ,उ जैसे वर्ण युक्त रचना को लघु माना जाता है। जैसे-रमन इसमें तीनों वर्ण लघु है।
(ख) ह्रस्व स्वर पर जब चन्द्रबिन्दु लगता है तब भी वह लघु होता है
(ग) आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, की मात्रा से युक्त वर्ण गुरू होते हैं।
(घ) अनुस्वार युक्त वर्ण गुरू होता है। जैसे-चंचल में च वर्ण गुरू है।
(ड) विसर्ग युक्त वर्ण भी गुरू होता है। जैसे-प्रात में त वर्ण गुरू है।
(च) संयुक्त वर्ण के पूर्ण का वर्ण गुरू होता है। वर्ण और मात्रा के आधार पर छन्द के चार भेद होते हैं।
1. मात्रिक 2. वार्णिक 3. उभय 4. मुक्तक
1. मत्रिक छन्द
इन छन्दों में मात्राओं की समानता का ध्यान तो रखा जाता है किन्तु वर्गों की समानता पर नहीं कुछ प्रमुख मात्रिक छन्द इस प्रकार है।
(क) दोहा-इसके चार चरण होते हैं। पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राये, दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्रायें होती है।
जैसे-मेरी भव बाधा हरौं, राधा नागर सोय। जा तक की झाई परे, श्याम हरित दुति होय।
(ख) सोरठा-इसमें चार चरण होते हैं। पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्रायें, दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्रायें होती है। यह दोहे का उल्टा होता है।
जैसे-मूक होइ वाचाल पंगु, चढ़इ गिरिवर गहन। जासू कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल दहन।
(ग) चौपाई-इस छन्द में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं।
जैसे-निरखि सिद्ध साधक अनुरागे, सहज सनेहु सराहन लागे। होत न भूतल भाउ को, अचर सचर चर अचर करत को।
(घ) रोला – इसमे चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्रायें होती है।
जैसे- मदमाता जंग भला दीन दुख क्या पहिचाने, दीनबन्धु बिनु कौन दीन हिय को जाने। होता जो न आधार शोक में नाथ तुम्हारा, निराधा यह जीव भटकता फिरता मारा।
(5) कुण्डलियाँ-इसमें छ: चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्रायें होती हैं।
जैसे- रम्भा झुमत हो कहा थोरे ही दिन हेत, तुमसे केते है गये अरु द्वै हैं इति खेत। अरु द्वै, इति खेत मूल लघू खाता हीने। ताहु पै गज रहे दोठि तुम पर अति दीने। बरनै दीन दयाल हमें लखि होय अचम्भा। एक जन्म के लागि कहा झुकि झुमत रम्भा।
(च) बरवै-इसमें चार चरण होते हैं। प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्रायें, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में 7-7 मात्रायें होती है।
जैसे-वाम अंग शिव शोभित, शिवा अपार। सरद सुवारिद मे जनु, तड़ित विहार।
(छ) उल्लाला-इसमें चार चरण होते हैं। विषय चरणों में 15-15 मात्रायें सम चरणों में 13-13 मात्रायें होती है।
जैसे-सब भाँति सुशासित हो जहाँ, समता के सुखकर नियम। बस उसी स्वशासित देश, में जागे हे जगदीश हम।।
(ज) छप्पय-यह छ: चरण वाला छन्द है। प्रथम चार चरण रोला के अंतिम दो चरण उल्लाला के होते है।
जैसे-जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बने सबका निबलों के सुख में।। सबकों जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो। शान्ति दायिनी निशा, हर्षसूचक वासर हो।। सब भाँति सुशासित हो जहाँ, समता के सुखकर नियम। बस उसी स्वशासित देश में जागे जगदीश हम। |
2. वार्णिक छन्द
जिन छन्दों को केवल वर्ण गणना के आधार पर रचा गया है वह छन्द वार्णिक छन्द कहलाते हैं। वार्णित छन्द के सभी चरणों में वर्गों की संख्या का ध्यान रखा जाता है।
(क) इन्द्रवज्रा-इस छन्द में 11 वर्ण होते हैं प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण और दो गुरू वर्ण मिलकर 11 वर्ण होते हैं। |
जैसे-जागो उठो भारत देशवासी, आलस्य, त्यागों न बनो विलासी। ऊँचे उठो दिव्य कला दिखाओं, संसार में पूज्य पुन कहलाओं।
(ख) कवित्त-इस छन्द में प्रत्येक चरण में 16 और 15 पर विराम के साथ 31 वर्ण होते हैं तथा चरणान्त में अंतिम वर्ण गुरू होता है। |
जैसे- दीठि चका चौंधी भई देखत सुवर्ण मई, एक ते एक आछे द्वारिका के भौन हैं। पूछे बिन कोऊँ कहूँ काहू सो न बात करे, देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन है।
(ग) द्वत विलम्बित-इसके प्रत्येक चरण में नगण, भगण, भगण, रगण के क्रम कुल 12 वर्ण होते हैं।
जैसे -न जिससें कुछ पौरुष हो यहाँ, सफलता वह पा सकता कहाँ।
(घ) मालिनी – इसके प्रत्येक चरण में दो नगण, मगण, यगण, यगण के क्रम से कुल 15 वर्ण होते हैं। तथा 7-8 वों पर यति होती है।
जैसे-पल-पल जिसके मैं पन्थ को देखती थी। निशि-दिन जिसके ध्यान में थी बिताती।
(5) मदाक्रान्ता-इसके प्रत्येक चरण में भगण, मगण, नगण, तगण, के क्रम से कुल 17 वर्ण होते है। जिसमें क्रम से दो गुरू भी होते है। इस छन्द में 10-7 पर यति होती है।
जैसे- फूली डालें सुकुसुममयी तीय की देख आँखें। आ जाती है, मुरली धर की योहिनी मूरत आगे
(च) बसन्त तिलका-इसके प्रत्येक, चरण में तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरू के क्रम से 14 वर्ण होते हैं।
जैसे -आए प्रजाधिप निकेतन पास ऊधो। पूरा प्रसार करती करुणा जहाँ थी।
(छ) उभय छन्द-गणों में वर्णो का बंधा होना प्रमुख लक्षण होने के कारण इसे उभय छन्द कहते हैं। इस छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता बनी रहती है।
जैसे-पल-पल जिसके मैं पथ को देखती थी। निशि-दिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती।
(ज) मुक्त छन्द-जिस विषम छन्द में वर्णिक या मात्रिक का कोई प्रतिबन्ध न हो। चरणों की अनियमित, स्वच्छन्द | गति नाद एवं ताल के आधार पर भावानुकूल लय का विधान ही मुक्तक छन्द है। आधुनिक कविता इसी छन्द में लिखी जा रही है।
जैसे-वह तोड़सी पत्थर, देख मैने उसे, इलाहाबाद में पथ पर !