हैफा दिवस
- हैफा दिवस प्रतिवर्ष भारतीय सेना द्वारा 23 सितंबर को मनाया जाता है।
- 23 सितंबर, 1918 में भारतीय जवानों ने तुर्की सेना के ख़िलाफ़ लड़ते हुए इस्रायल के हैफा शहर को आज़ाद कराया था।
- इस्रायल में आज भी इस दिन(23 सितंबर ) को ‘हैफा दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है।
हैफा वृत्तांत
- प्रथम विश्व युद्घ (1914-1918) के समय ऑटोमन यानी उस्मानी तुर्कों की सेनाओं ने हैफा शहर को क़ब्ज़ा लिया था।
- वे वहां यहूदियों पर अत्याचार कर रही थी।
- हैफा पर कब्जे के लिए एक तरफ़ मशीन गन और तोपों से लैस तुर्कों और जर्मनी की सेना थी तो दूसरी तरफ़ अंग्रेज़ों की तरफ़ से भाले और तलवारों वाली हिंदुस्तान की तीन रियासतों की फौज थी।
- इसके बावजूद भारतीय सेना तुर्की और जर्मनों पर भारी पड़ी और उन्हें हैफा छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
- हैफा शहर की आज़ादी के संघर्ष में तीन भारतीय रेजीमेंटों- जोधपुर लांसर्स, मैसूर लांसर्स और हैदराबाद लांसर्स की फौज ने भाग लिया था।
- ब्रिटिश सेना के तरफ़ से लड़ते हुए इन भारतीय रेजीमेंटों ने अत्याचारी दुश्मन के चंगुल से हैफा शहर को स्वतंत्र कराया था।
- इस संघर्ष में 900 से ज्यादा भारतीय योद्घाओं ने बलिदान दिया था, जिनके स्मृतिशेष आज भी इस्रायल में सात शहरों में मौजूद हैं।
- हैफा संघर्ष में जोधपुर लांसर्स ने अपने सेनापति मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में हैफा मुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 23 सितंबर, 1918 को तुर्की सेना को खदेड़कर मेजर ठाकुर दलपत सिंह के बहादुर जवानों ने इस्रायल के हैफा शहर को आज़ाद कराया।
- उनकी उसी बहादुरी को सम्मानित करते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें मरणोपरांत “मिलिटरी क्रास पदक” अर्पित किया था।
- दिल्ली में तीन मूर्ति भवन के सामने सड़क के बीच लगी तीन सैनिकों की मूर्तियां उन्हीं तीन घुड़सवार रेजीमेंटों की प्रतीक हैं, जिन्होंने अपनी जान न्यौछावर करके हैफा शहर को उस्मानी तुर्कों से मुक्त कराया था।
- यह युद्ध दुनिया का मात्र ऐसा युद्ध था जो की तलवारो और बंदूकों के बीच हुआ।