भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ,इसरो(ISRO) का पूरा नाम है ।
12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद (गुजरात) में जन्मे डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई ने 15 अगस्त, 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की थी।
डॉ.विक्रम ए. साराभाई को भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संस्थापक जनक माना जाता है।
उन्होंने 11 नवंबर, 1947 को अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) की स्थापना की।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में है
यह अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कार्य करता है जिसकी निगरानी सीधे भारत के प्रधानमंत्री द्वारा होती हैं।
भारत में अंतरिक्ष से जुड़े अनुसंधान कार्यों को करने के लिए यह एक प्रमुख राष्ट्रीय संगठन है।
1972 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष आयोग का गठन किया और अंतरिक्ष विभाग बनाया जिसके अंतर्गत इसरो को लाया गया।
01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया।
इसरो का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है।
इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है
1. इन्सैट-संचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए
2. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली-संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए
इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं।
उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है।
राकेट/ प्रमोचन यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं।
इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापी राकेटों का प्रमोचन किया जाता है।
तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापी राकेटों का प्रमोचन किया जाता
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा भूमध्यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्स) में हुआ।
अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र (एसएसटीसी) का पुनर्नामकरण के सम्मान में किया गया विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के रूप में किया गया।
डॉ. विक्रम साराभाई का 30 दिसंबर, 1971 को असामयिक निधन हो गया था।
देश भर में इसरो छह प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं।
1.विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम में
2.इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर में
3.सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा में
4.द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम,बेंगलूर और महेंद्रगिरी में
5.अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में
6.राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) हैदराबाद में
वीएसएससी, तिरुवनंतपुरम में प्रमोचन यान का निर्माण किया जाता है;
आइजैक, बेंगलूर में उपग्रहों को अभिकल्पित और विकसित किया जाता है;
एसडीएससी, श्रीहरिकोटा में उपग्रहों और प्रमोचन यानों का एकीकरण और प्रमोचन किया जाता है;
एलपीएससी में निम्नतापीय चरण सहित द्रव चरणों का विकास किया जाता है, सैक, अहमदाबाद में संचार और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए संवेदकों तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग संवंधित का कार्य किए जाते हैं
एसएलवी-3 के अलावा, भारत ने संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी), ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का विकास किया।
उपग्रहों को मोटे तौर पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह।
संचार उपग्रह आम तौर पर संचार, दूरदर्शन प्रसारण, मौसम-विज्ञान, आपदा चेतावनी आदि की ज़रूरतों के लिए भू-तुल्यकाली कक्षा में कार्य करते हैं।
सुदूर संवेदन उपग्रह प्राकृतिक संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए अभिप्रेत है और यह सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) से परिचालित होता है।
पहले भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट्ट था।इसका प्रमोचन 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ से किया गया।