मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
- ओजोन परत की रक्षा के लिए सबसे पहले 1985 में ‘वियना ओजोन परत संरक्षण समझौता’ हुआ लेकिन इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकी।
- ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण से उत्पन्न चिंताओं के निवारण हेतु संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को विभिन्न देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का क्रियान्वयन 1 जनवरी, 1989 को हुआ।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में यह फैसला किया गया कि वर्ष 2050 तक ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले तत्त्वों के उत्पादन पर नियंत्रण कर लिया जाएगा।
- सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि ओज़ोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाएगा।
- इस प्रोटोकॉल को व्यवहारिक रूप से लागू करने हेतु सदस्य देशों द्वारा हर वर्ष ‘MOP’ (Meeting of Parties) होती है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर विश्व के 197 पक्षकारों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किये हैं।
- वर्ष 1990 में मॉन्ट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने वर्ष 2000 तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग को भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की थी।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल विश्व का सबसे सफल प्रोटोकॉल माना जाता है।
- ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न पदार्थों के उत्पादन तथा उपभोग पर नियंत्रण के उद्देश्य के साथ मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल बना है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल वस्तुतः ओज़ोन परत के संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसमें ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों को कम करने पर ज़ोर दिया जाता है।
किगाली समझौता
- भारत ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के लिए किगाली समझौते के अनुसमर्थन को मंजूरी दे दी है।
- भारत को अब 2047 तक अपने HFC के उपयोग को 80% तक कम करने की आवश्यकता है।
- चीन और अमेरिका को 2045 और 2034 में इस लक्ष्य को हासिल करने का निर्णय लिया है।