नार्को टेस्ट
- नार्को टेस्ट में सोडियम पेंटोथल नामक दवा का इंजेक्शन दिया जाता है,
- सोडियम पेंटोथल एक कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोशी की अवस्था को प्रेरित करता है। इससे सम्बंधित व्यक्ति की कल्पना-शक्ति बेअसर हो जाती है जिससे व्यक्ति स्वाभविक रूप से सत्य बोलता है।
- नार्को विश्लेषण एक फोरेंसिक परीक्षण होता है, जिसे जाँच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ की उपस्थिति में किया जाता है।
- “सच का प्याला” (ट्रुथ सीरम) के रूप में संदर्भित दवा का उपयोग सर्जरी के दौरान निश्चेतना के लिए बड़ी खुराक में किया जाता था एवं ऐसा कहा जाता है कि इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुफिया अभियानों के लिए भी किया जाता था।
- नार्को टेस्ट में चेक किया जाता है कि अमुक व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित तो नहीं है। बुजुर्ग, दिमागी रूप से कमजोर, नाबालिग या गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों में ये टेस्ट एप्लाई नहीं किया जाता है।
- व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के आधार पर उसको नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है।
पॉलीग्राफ या लाई डिटेक्टर टेस्ट
- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत शरीर में होने वाले कई संकेतकों की जांच की जाती है।
- इन शारीरिक संकेतकों में रक्तचाप, नाड़ी, श्वसन और त्वचा की चालकता को मापा जाता है और इसे रिकॉर्ड किया जाता है इस परीक्षण के तहत व्यक्ति से कुछ सवाल पूछे जाते हैं और इन सवालों के जवाबों को रिकॉर्ड किया जाता है।
- पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहते हैं. इसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है ।
- पॉलीग्राफ टेस्ट मशीन को झूठ पकड़ने वाली मशीन और लाई डिटेक्टर के नाम से जाना जाता है. इसकी खोज जॉन अगस्तस लार्सन ने 1921 में की थी।
- आम तौर पर देखा गया है की जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसमे कई शारीरिक प्रतिक्रियाएं होने लगती हैं। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर व्यक्ति के हाव भाव और उसके शारीरिक प्रतिक्रियाओं को दर्ज़ कर उसके झूठ का पता लगाया जाता है
- पॉलीग्राफ टेस्ट में स्फिग्मोमैनोमीटर, न्युमोग्राफ और इलेक्ट्रोड मशीनों का उपयोग किया जाता है।
- इन मशीनों के जरिए टेस्ट से गुजर रहे व्यक्ति के शारीरिक क्रियाओं जैसे ब्लड प्रेशर, सांस लेने की गति, पल्स रेट, शरीर से निकल रहे पसीने का डेटा रिकॉर्ड किया जाता है।
- हर इंसानी प्रतिक्रिया के लिए एक संख्यात्मक मान दिया जाता है ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि व्यक्ति सच कह रहा है, धोखा दे रहा है या अनिश्चित है।
- पॉलीग्राफ टेस्ट पहली बार 19 वीं शताब्दी में इतालवी अपराधी साइसेर लोम्ब्रोसो के खिलाफ किया गया था, जिनकी पूछताछ के दौरान रक्तचाप में बदलाव को मापने के लिए एक मशीन का उपयोग किया था।
- इन तरीकों में से कोई भी वैज्ञानिक तौर से 100 फीसदी कारगर साबित नहीं हुआ है, और चिकित्सा क्षेत्र में भी विवादास्पद बना हुआ है।
- समाज के कमजोर वर्गों के लोग जो अपने मौलिक अधिकारों से अनभिज्ञ हैं और कानूनी सलाह लेने के काबिल नहीं हैं, के व्यक्तियों पर ऐसे परीक्षणों के परिणाम प्रतिकूल हो सकते हैं।
- ऐसे परीक्षण को आने वाले वक़्त में गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा मीडिया द्वारा भी इसका गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।