- भारतीय सिनेमा के पितामह सत्यजीत रे का जन्म 2 मई, 1921 को बंगाल के एक ऐसे परिवार में हुआ था जो विश्व में कला और साहित्य के लिए विख्यात था
- रे की शुरुआती शिक्षा कलकता के सरकारी स्कूल में हुई
- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता से स्नातक होने के बाद राय ने पेंटिंग के अध्ययन की शिक्षा ली.
- सत्यजित रे के अंदर फिल्में बनाने को लेकर काफी रुचि थी
- सन् 1947 में उन्होंने अन्य लोगों के साथ ‘कलकत्ता फिल्म सोसायटी’ की स्थापना की
- सत्यजीत रे का जीवन प्रत्येक भारतीय के लिए एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत है।
- सत्यजीत रे एक प्रख्यात फिल्म निर्माता, लेखक, चित्रकार, ग्राफिक डिजाइनर एवं संगीतकार थे।
- उनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ एक सफलतम फिल्म थी. इस फिल्म ने रिकॉर्ड 11 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते जिसमें कान फिल्म फेस्टिवल का बेस्ट ह्यूमैन डॉक्यूमेंट्री शामिल है
- सत्यजित रे ने प्रेमचंद की ही ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘सद्गति’ पर फिल्में बनाईं जिसने काफी प्रसिद्धि प्राप्त की
- सत्यजीत रे ने इसके बाद चारुलता, आगंतुक और नायक जैसी अन्य बेहतरीन फिल्में बनाईं थीं।
- भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1992 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया था।
- इस महान शख्सियत की विरासत को ध्यान में रखते हुए ‘सिनेमा में उत्कृष्टता के लिए सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार’ की शुरुआत की गई है जिसे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में हर साल दिया जाएगा ।
- पुरस्कार में 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार, एक प्रमाण पत्र, शॉल, एक रजत मयूर पदक और एक स्क्रॉल शामिल हैं।
- सत्यजीत रे के करियर की अंतिम फिल्म 1991 में बनी आंगतुक फिल्म थी।
- सिनेमा में अपने बेजोड़ निर्देशन और अतुलनीय योगदान के कारण उन्हें बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में विश्व के तीन सर्वकालिक निर्देशकों में शामिल किया गया था।
- सत्यजीत रे को प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार का ऑनरेरी अवॉर्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट भी प्राप्त हुआ है।
- भारतीय सिनेमा में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाले एवं भारतीय सिनेमा को नई दिशा देने वाले इस महापुरुष का निधन 23 अप्रैल, 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से हो गया था।
- भारतीय सिनेमा के विकास और संवर्धन के लिए कई लोगों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है लेकिन जब भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहुंचाने की बात हो तो वहां पर सत्यजीत रे का नाम सबसे पहले आता है।
- आज भी उनकी अमिट छाप भारतीय सिनेमा पर स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।