अविश्वास प्रस्ताव
- जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाती है।
- इसे No Confidence Motion भी कहते हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75 में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रह सकती है।
- अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।
कार्य स्थगन प्रस्ताव
- लोकसभा के नियम 56 के तहत देश की किसी गंभीर और महत्त्वपूर्ण समस्या पर चर्चा के लिये सदन में स्थगन प्रस्ताव लाया जाता है।
- इस पर चर्चा के लिये सदन की समस्त नियमित कार्यवाही रोक दी जाती है यानी स्थगित कर दी जाती है। इसीलिये इसे स्थगन प्रस्ताव कहा जाता है।
- स्थगन प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार की हाल ही की किसी चूक अथवा असफलता के लिये, जिसके गंभीर परिणाम हों, सरकार को आड़े हाथ लेना है।
- इसे स्वीकार किया जाना एक प्रकार से सरकार की निंदा मानी जाती है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
- लोकसभा के नियम 197 के तहत यह प्रस्ताव लाया जाता है, लेकिन इस पर कोई मतदान या चर्चा नहीं होती।
- कोई सदस्य स्पीकर की अनुमति से अविलंब लोक महत्त्व के किसी मामले की ओर किसी मंत्री का ध्यान दिलाता है और उससे अनुरोध करता है कि वह उस मामले पर वक्तव्य दे तो ऐसे प्रस्ताव को संसदीय भाषा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहा जाता है।
आधे घंटे की चर्चा
- लोक महत्त्व के मुद्दे उठाने के लिये संसद सदस्य के पास आधे घंटे की चर्चा के रूप में एक अन्य उपकरण उपलब्ध है।
- किसी भी तथ्य संबंधी मामले पर तारांकित अथवा अतारांकित प्रश्न के उत्तर के संबंध में स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है तो कोई भी सदस्य उस पर आधे घंटे की चर्चा कराने के लिये सूचना दे सकता है।
व्यवस्था का प्रश्न
- व्यवस्था का प्रश्न उन नियमों अथवा संविधान के ऐसे अनुच्छेदों के निर्वचन अथवा प्रवर्तन के संबंध में होगा जो सभा के कार्य को विनियमित करते हैं और जो अध्यक्ष के संज्ञान में लाकर उठाया जाएगा।
- कोई सदस्य व्यवस्था का प्रश्न उठा सकता है और इसका निर्णय अध्यक्ष करेंगे कि क्या उठाया गया प्रश्न व्यवस्था का प्रश्न है और यदि वह व्यवस्था का प्रश्न है तो वह इस पर निर्णय देंगे जो अंतिम होगा।
अल्पकालीन चर्चा
- संसद में अल्पकालीन चर्चा की शुरुआत 1953 के बाद हुई।
- इसके तहत सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न पर सदन का ध्यान आकर्षित किया जाता है।
- ऐसी चर्चा के लिये स्पष्ट कारणों सहित सदन के महासचिव को सूचित करना होता है।
- इस सूचना पर कम-से-कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होना भी आवश्यक है।
संसदीय विशेषाधिकार
- संसद के प्रत्येक सदन तथा उसकी समितियों को सामूहिक रूप से और प्रत्येक सदन के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त तथा जिनके बिना वे अपने कृत्यों का निर्वहन दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण ढंग से नहीं कर सकते हैं ‘संसदीय विशेषाधिकार’ कहलाते हैं
- संसदीय विशेषाधिकारों का उद्देश्य संसद की स्वतंत्रता, प्राधिकार तथा गरिमा की रक्षा करना है।
- सभा को सदन की अवमानना अथवा उसके किसी विशेषाधिकार का हनन करने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित करने का अधिकार प्राप्त है।
नियम 193 के तहत चर्चा
- नियम 193 के अधीन चर्चा में सभा के समक्ष औपचारिक प्रस्ताव शामिल नहीं है।
- इस नियम के अधीन चर्चा के पश्चात् कोई मतदान नहीं हो सकता।
- सूचना देने वाला सदस्य एक संक्षिप्त वक्तव्य दे सकता है और ऐसे सदस्य जिन्होंने अध्यक्ष को पहले सूचित किया हो, चर्चा में भाग लेने कीअनुमति दी जा सकती है।
- जिस सदस्य ने चर्चा उठाई है उसको उत्तर देने का कोई अधिकार नहीं है।
- चर्चा के अंत में, संबंधित मंत्री एक संक्षिप्त उत्तर देता है।
नियम 377 के तहत चर्चा
- ऐसे मामले जो व्यवस्था का प्रश्न नहीं हैं, नियम 377 के अधीन विशेष उल्लेख द्वारा उठाए जा सकते हैं।
- 1965 में तैयार किये गए प्रक्रिया नियम सदस्य को सामान्य लोक हित के मामले उठाने का अवसर प्रदान करते हैं।
- वर्तमान में प्रतिदिन 20 सदस्यों को नियम 377 के अधीन मामले उठाने की अनुमति दी जाती है।