सेरोगेसी एक ऐसी प्रकिया है जिसमें बच्चे न पैदा कर पाने वाले शादीशुदा कपल्स इसकी मदद लेते हैं।
वही सरोगेसी एक ऐसा वरदान है, उन महिलाओं के लिए जो माँ बनने के सुख से वंचित हैं।
आई वी एफ(IVF) सरोगेसी को बाँझ दम्पत्ति अपनाकर माता-पिता का सुख पा सकते हैं।
सरोगेसी की सुविधा वे महिलाएं ले सकती है, जो शारीरिक समस्या के कारण माँ नहीं बन सकती। ऐसे में दूसरी महिला के कोख को प्रयोग में लेने को सरोगेसी कहा जाता है।
सरोगेट मदर
सेरोगेसी के ज़रिये शादीशुदा कपल किसी महिला की कोख को किराए पर लेते हैं और ये महिला बच्चे की प्रेग्नेंसी के लिए तैयार होती है।
सरोगेसी प्रक्रिया को करने वाली महिला को सरोगेट मदर के नाम से जाना जाता है।
सरोगेट मदर बनने का निर्णय पूर्ण रूप से महिला की इच्छा से होता है। किसी भी तरह की जबरदस्ती करके यह फ़ैसला नहीं करवाया जा सकता है।
माता-पिता और सरोगेट माँ के बीच एक अनुबंध किया जाता है कि भ्रूण बनने के बाद से लेकर शिशु के जन्म तक की देख-रेख उनकी निगरानी में होगी।
साथ ही बच्चे पर केवल माता-पिता का ही हक होगा। इस प्रक्रिया में माता-पिता को इंटेंडेड पेरेंट्स कहा जाता है और यह तीसरा प्रजनन पक्ष कहलाता है।
सरोगेसी दो प्रकार की होती है-
ट्रेडिशनल सरोगेसी
जेस्टेशनल सरोगेसी
ट्रेडिशनल सरोगेसी
ट्रेडिशनल सरोगेसी में बच्चे की चाह रखने वाले पुरुष के शुक्राणु को सरोगेट मदर के अंडाणु के साथ निषेचित किया जाता है, इस प्रक्रिया में बच्चे का जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है।
जेस्टेशनल सरोगेसी
जेस्टेशनल सरोगेसी में परखनली प्रक्रिया यानि आई वी एफ(IVF) के ज़रिए माता-पिता के अंडे व शुक्राणुओं को लेकर भ्रूण तैयार किया जाता है।
जिसको फिर सरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में बच्चे का जैनेटिक संबंध माता-पिता दोनों से होता है।
इस प्रकार की सरोगेसी प्रक्रिया में सरोगेट माँ का बच्चे के साथ कोई भी आनुवंशिक संबंध नहीं होता है।
सरोगेसी के कानूनी नियम
सरोगेसी का दुरूपयोग रोकने के लिए सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल 2019 पास किया गया है।
लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के द्वारा इस बिल को पेश किया गया था। इस बिल में नेशनल सरोगेसी बोर्ड, स्टेट सरोगेसी बोर्ड के गठन की बात है। वहीं सरोगेसी की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का भी प्रावधान है।
सेरोगेसी विधेयक 2016 के तहत सेरोगेसी में कुछ बदलाव किये गए हैं। इन बदलावों में सरोगेट मां अब सिर्फ एक ही बार अपनी कोख किराये पर दे सकती है। नए कानून के तहत सरोगेट मां अब सरोगेसी प्रक्रिया अपना रहे कपल्स की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए। जिसका ख़ुद का एक बच्चा होना भी अनिवार्य है।
सरोगेसी की अनुमति सिर्फ संतानहीन विवाहित दंपतियों को ही मिलेगी। साथ ही सरोगेसी की सुविधा का इस्तेमाल लेने के लिए कई शर्तें पूरी करनी होंगी। जैसे जो महिला सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होगी, उसकी सेहत और सुरक्षा का ध्यान सरोगेसी की सुविधा लेने वाले को रखना होगा।
इस विधेयक में बच्चे को 9 महीने तक अपनी कोख में रखने वाली सरोगेट मां की उम्र भी तय की गई है। जिसमें उसकी उम्र 25 -35 वर्ष निर्धारित की गई है।
सरोगेट मां को अब प्रेग्नेंसी के दौरान ही अपना ध्यान रखने और मेडिकल जरूरतों के लिए ही पैसे ही दिए जा सकते हैं। मेडिकल जरूरतों से ज़्यदा पैसा देना भी अब सरोगेसी के अपराध में शामिल किया जायेगा।
सेरोगेसी कानून में संसोधन के बाद 5 साल की उम्र से ज़्यदा वाले शादीशुदा जोड़े ही सेरोगेसी का फायदा उठा पाएंगे। इसके अलावा सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ सिर्फ उन्हीं कपल्स को मिल पाएंगे जिसमें मेल या फीमेल दोनों में से कोई एक बच्चा पैदा करने में स्थिति में न हो।
किसी भी व्यक्ति, संगठन, या सरोगेसी क्लिनिक द्वारा सरोगेसी से रिलेटेड विज्ञापन करने पर भी मनाही है। इसके अलावा सरोगेसी से जन्मे बच्चे को छोड़ना और सरोगेसी के लिए ह्यूमन स्पर्म्स की खरीदारी और बिक्री करना भी नए विधयेक के तहत अवैध है।
सरोगेसी के नए क़ानून को तोड़ने पर क़रीब 5-10 लाख रुपये का जुमार्ना और कारावास की सजा दी जा सकती है ।
भारत पिछले कुछ वर्षों में काफी तेज़ी से सरोगेसी केंद्र के रूप में उभरा है। जहां सबसे ज़्यादा विवाद कमर्शियल सरोगेसी को लेकर रहा है।
भारत में सरोगेसी करवाना अन्य देशों की अपेक्षा काफी सस्ता है जिसके कारण भारी तादात में विदेशी नागरिक भारत आकर सरोगेसी करवाते है।
कमर्शियल सरोगेसी के ज़रिये सरोगेट मां को चिकित्सा खर्च के अलावा पैसों का भी भुगतान किया जाता है। इसके अलावा सरोगेट मांओं का शोषण, गलत व्यवहार, और सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़ देने के मामले भी देखे गए हैं।