महाराणा प्रताप
- महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
- इनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता रानी जयवन्ताबाई थीं।
- महाराणा प्रताप, महान राणा सांगा के पौत्र थे।
- महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता और भीलों के साथ ही वे युद्ध कला सीखते थे
- भील अपने पुत्र को किका कहकर पुकारते है इसलिए महाराणा को कीका नाम से पुकारते थे।
- महाराणा प्रताप सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे।
- राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी
- उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया।
- महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया।
- बादशाह अकबर की साम्राज्यवादी नीति में मेवाड़ हमेशा एक सशक्त अवरोधक के रूप में प्रस्तुत हुआ।
- महाराणा सांगा से लेकर राणा प्रताप तक एक सशक्त अवरोधक क्रमबद्धता दिखाई देती है।
- अकबर की साम्राज्यवादी नीतियों से बचने के लिए उदयसिंह ने मेवाड़ को छोड़कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला और उदयपुर को अपनी नई राजधानी बनाई थी।
- वास्तविक रूप में मेवाड़ उदयसिंह के अधीन था।
- महाराणा उदयसिंह ने नियमों के विरुद्ध अपने छोटे पुत्र को राजगद्दी पर बैठाया किंतु बाद में राजपूत सरदारों ने महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया।
महाराणा प्रताप का संघर्ष
- हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को हुआ था।
- इस दिन हल्दीघाटी में मुग़लों की सेना और राणा प्रताप की सेना आमने-सामने थी ।
- हल्दीघाटी, राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि राजसमन्द और पाली जिलों को आपस में जोड़ती है।
- इसका नाम ‘हल्दीघाटी‘ इसलिये पड़ा क्योंकि यहां की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है l
- अकबर ने महाराणा प्रताप को अन्य राजपूत राजाओं की तरह अपने अधीन लाने की काफी कोशिशें की, लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी उनके समक्ष अपने घुटनों को नहीं टेका।
- अकबर ने अजमेर को अपना केंद्र बनाकर प्रताप के विरुद्ध सैन्य अभियान को प्रारंभ कर दिया।
- मुगल बादशाह अकबर ने अपनी विशाल सेना को मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में मेवाड़ के लिए उतार दिया।
- इतिहासकारों के अनुसार इस सैन्य दल में मुगल, राजपूत और पठान योद्धाओं के साथ जबरदस्त तोपखाना भी था।
- अकबर के प्रसिद्ध सेनापति महावत खां,आसफ खां,महाराजा मानसिंह के साथ शाहजादा सलीम (जहांगीर) भी उस मुगल वाहिनी का संचालन कर रहे थे, जिसकी संख्या 80 हजार से 1 लाख तक थी।
- इस विशाल मुगल सेना के सामने महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया जिसमें कुल 20000 सैनिक शामिल थे जो कि एक अद्वितीय बात थी।
- इस युद्ध में महाराणा प्रताप की छोटी सी सेना ने मुगल सैनिकों के दांत खट्टे कर दिए।
- जब परिस्थितियां विकट हुई और मुगल सेना हावी होने लगी, तब महाराणा प्रताप युद्ध क्षेत्र से पीछे हट गए और गुरिल्ला पद्धति से अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाए रखा।
- उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगलों में भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर किया किंतु उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया
- विपद परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने मातृभूमि के प्रति अपनी निष्ठा और स्वाभिमान को जागृत रखते हुए मुगल शासन के विरुद्ध अपनी लड़ाई हमेशा जारी रखी।
- बादशाह अकबर के 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद भी वह महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सके।
- महाराणा प्रताप के इस संघर्ष में उनके वफादार घोड़े चेतक ने हर पल साथ दिया एवं अपनी आखिरी सांस तक चेतक ने अपने स्वामी की सेवा की।
- अंततोगत्वा युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को चावंड में हुई।
- भारतीय इतिहास के पन्नों में महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा आज भी हमें मातृभूमि के प्रति प्रेम, स्वाभिमान और शौर्य के लिए प्रेरित करती है।