वैदिक संस्कृति
- वैदिक संस्कृति को दो भागों में विभाजित कर सकते है
- ऋग्वैदिक काल (1500-1000BC)
- उत्तर वैदिककाल (1000-600BC)
ऋग्वैदिक काल
- ऋग्वैदिक काल में कबीलाई समाज था।
- ऋग्वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी थी। उन्हें पुरूषों के समान शिक्षा का अधिकार प्राप्त था।
- ऋग्वैदिक काल में अनेक विदुषी महिलाओं की चर्चा मिलती है जैसे- अपाला, घोषा, विश्ववारा आदि सभा-समिति में उनका प्रवेश था।
- महिलाओं का विवाह कम उम्र में न होकर यौवनारम्भ की आयु में होता था।
- ऋग्वैदिक समाज में सामाजिक संघर्ष कबीलों में होते रहते थे इसमें दशराज युद्ध काफी प्रसिद्ध है।
- ऋग्वैदिक काल में सरदार तंत्रात्मक व्यवस्था थी उसका पद भी आनुवांशिक था लेकिन वास्तविक राजा जैसी हैसियत नहीं थी क्योंकि उसके पस अधिकारी तंत्र, निजी सेना नहीं थी।
- ऋग्वैदिक काल का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था तथा कृषि द्वित्तीयक व्यवसाय था।
- ऋग्वैदिक समाज शिल्प व्यवसाय किया करते थे।
- ऋग्वैदिक काल में धार्मिक दृष्टि से काफी विविधता थी जहाँ एकेश्वरवाद, बहुदेववाद, सर्वेश्वरवाद सबका उल्लेख है।
- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के प्रमुख देवताओं में इन्द्र, वरूण आदि महत्त्वपूर्ण थे। आर्यों ने प्रकृति का दैवीकाव्य किया।
उत्तर वैदिककाल
- उत्तर वैदिक संस्कृति का उल्लेख सामवेद, यजुर्वेद व अर्थवेद से प्राप्त होता है।
- उत्तर वैदिक काल में आर्यों ने कबीलाई जीवन का परित्याग कर दिया स्थायी जीवन में प्रवेश किया। समाज में सम्पत्ति की धारणा प्रमुख हुई।
- कबीलाई समाज टूटकर वर्ण विभक्त समाज में परिवर्तित हो गया।
- उत्तर वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई। एतरेय ब्राह्मण में पुत्री को दुखो का कारण कहा गया।
- उत्तर वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था की स्थापना हुई।
- उत्तर वैदिक काल में राजतंत्रात्मक व्यवस्था का विकास हुआ। अधिकारी व्यवस्था की नीव पड़ी।
- ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रें में राजाओं की चर्चा मिलती है।
- उत्तर वैदिक काल में स्थायी जीवन के अनुरूप अर्थव्यवस्था का विकास हुआ।
- उत्तर वैदिक काल में कृषि द्वित्तीयक की बजाय प्राथमिक व्यवसाय बन गया।
- उत्तर वैदिक काल में लोहे के व्यवसाय की महत्ता स्थापित हुई।
- उत्तर वैदिक काल में धर्म की दो धाराएँ देखने को मिलती है-
- कर्मकाण्डीय धारा- इसके तहत तंत्रमंत्र पशुबलि, यज्ञ पर अधिक बल दिया गया।
- दार्शनिक धारा- इसमें कर्मकाण्डो की निंदा की गई तथा ज्ञान और मोक्ष पर बल दिया गया।
प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ
- ऐतरेय ब्राह्मण- राजा के दैवीय उत्पत्ति की चर्चा है।पुत्री को दुःख का कारण बताया गया।
- शतपथ ब्राह्मण- पुनर्जन्म का सिद्धान्त का वर्णन है।
प्रमुख उपनिषद
- छंदोग्य उपनिषद- कृष्ण की प्रथम चर्चा छंदोग्य उपनिषद में है।
- तैतरीय उपनिषद-अतिथि देवो भव का उल्लेख मिलता है।
- मुण्डकोपनिषद्-सत्यमेव जयते की चर्चा है।