42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976
- 42वाँ संशोधन सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन है इसे लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है।
- यह संशोधन स्वर्ण सिंह समिति के आधार पर किया गया था।
- संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता तीन नए शब्दों को जोड़ा गया।
- एक नये भाग-iv (क) में नागरिकों के लिये मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया।
- कैबिनेट की सलाह मानने के लिये राष्ट्रपति को बाध्य कर दिया गया।
- भाग (xiiv) (क) जोड़ कर प्रशासनिक अधिकरणों तथा अन्य मामलों के लिये अधिकरणों की व्यवस्था की गई।
- वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर वर्ष 2001 तक लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या को निश्चित कर दिया गया।
- संवैधानिक संशोधन को न्यायिक जाँच से बाहर किया गया।
- SC और HC के न्यायीक समीक्षा तथा रिट न्यायक्षेत्र की शक्तियों में कटौति की गई।
- लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ष की बढ़ोतरी की गई।
- संसद को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से निपटने के लिये विधि बनाने की शक्तियाँ दी गई तथा यह स्पष्ट किया गया कि ये कानून मौलिक अधिकारों से प्रभावित नहीं होगें।
- तीन नये नीति-निदेशक तत्व जोड़े गए ये हैं-
- समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता
- उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों की सहभागिता
- पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्द्धन और वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण करना
- भारत के किसी भाग में राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा की व्यवस्था की गई।
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधि को एक-बार में 6 माह से बढ़ाकर एक वर्ष तक कर दिया गया।
- किसी भी राज्य में कानून और व्यवस्था की गंभीर स्थिति से निपटने के लिये केंद्र को सशस्त्र बलों को भेजने का अधिकार/शक्तियाँ दी गई।
- पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में भेजा गया। ये हैं- शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नापतौल एवं न्याय प्रशासन, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को छोड़कर अन्य सभी न्यायालयों का गठन एवं संगठन।
- संसद एवं राज्य विधानसभाओं से कोरम की आवश्यकता की समाप्ति की गई।
- अखिल भारतीय विधि सेवा के सृजन की व्यवस्था की गई।
43वाँ संशोधन अधिनियम, 1997
- संशोधन न्यायीक समीक्षा तथा रिट जारी करने के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायिक क्षेत्रधिकारों को पुनःस्थापित कर दिया गया।
- राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के संदर्भ में विधि बनाने की संसद की विशेष शक्तियों को समाप्त कर दिया।
44वाँ संशोधन अधिनियम, 1978
- संशोधन लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के वास्तविक कार्यकाल को पुनःस्थापित कर दिया गया (अर्थात् पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।)
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों में कोरम की व्यवस्था को पूर्ववत रखा गया।
- संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
- संसद एवं राज्य विधानमंडलों की कार्यवाहियों की खबरों को समाचार पत्रों में प्रकाशन को संवैधानिक संरक्षण दिया गया।
- कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिये एक बार लौटाने/ वापस भेजने की राष्ट्रपति को शक्तियाँ दी गई। परंतु पुनर्विचारित सलाह को राष्ट्रपति को मानने के लिये बाध्य कर दिया गया।
- अध्यादेशों को जारी करने के संदर्भ में राष्ट्रपति, राज्यपालों एवं प्रशासकों की अंतिम संतुष्टि वाले उपबंध को समाप्त कर दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की कुछ शक्तियों को पुनः बहाल कर दिया गया।
- राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में ‘आंतरिक अशांति’ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द को रखा गया।
- राष्ट्रपति द्वारा कैबिनेट की लिखित सिफारिश के आधार ही राष्ट्रीय आपात की घोषणा करने की व्यवस्था की गई।
- राष्ट्रपति शासन तथा राष्ट्रीय आपातकाल के संदर्भ में कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा के उपाय किये गये।
- मौलिक अधिकारों की सूची में संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा उसे केवल एक विधिक अधिकार के रूप में रखा गया।
- अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किये जा सकने की व्यवस्था की गई।
- उस उपबंध को हटा दिया गया जिसने न्यायपालिका की राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी।
50वाँ संशोधन अधिनियम, 1984
- संशोधन संसद को खुफिया संगठनों या सशस्त्र बलों या खुफिया सूचना हेतु स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में कार्य करने वाले व्यक्तियों के मौलिक अधिकारेां को प्रतिबंधित करने की शक्ति दी गई।
52वाँ संशोधन अधिनियम, 1985
- यह संशोधन ‘दल-बदल’ राजनीति को रोकने के लिये किया गया था।
- संशोधन संसद तथा विधानमंडलों के सदस्यों को दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराने की व्यवस्था की गई तथा इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी के लिये एक नई अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई।
58वाँ संशोधन अधिनियम, 1987
- संशोधन राष्ट्रपति को संविधान का प्राधिकृत हिंदी पाठ प्रकाशित कराने का अधिकार दिया गया (अनुच्छेद 394)।
61वाँ संशोधन अधिनियम, 1989
- संशोधन लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
65वाँ संशोधन अधिनियम, 1990
- संशोधन SC(अनुसूचित जाति) और ST(अनुसूचित जनजाति) के लिये राष्ट्रीय आयोग में विशेष अधिकारी के स्थान पर एक बहुसदस्यीय राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था की गई।
69वाँ संशोधन अधिनियम, 1991
- संशोधन केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए उसे ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया गया।
- दिल्ली के लिये 70 सदस्यीय विधानसभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की व्यवस्था भी की गई।
71वाँ संशोधन अधिनियम, 1992
- संशोधन कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या 18 हो गई।
92वें संविधान संशोधन 2003
- संशोधन द्वारा 4 भाषाएँ बोडो, मैथिली, डोगरी, संथाली संविधान की आठवीं अनुसूचि में जोड़ी गयी।इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या 22 हो गई।