प्रधानमंत्री पोषण योजना
- सितंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भोजन उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण या पीएम-पोषण योजना को मंज़ूरी दी।
- केंद्रीय सरकार ने योजना के लिये 1.31 ट्रिलियन रुपए के वित्तीय परिव्यय की घोषण की।
- इस योजना ने स्कूलों में मध्याह्न भोजन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम या मध्याह्न भोजन योजना की जगह ले ली।
- इस योजना को पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।
प्रधानमंत्री पोषण योजना की विशेषताएँ
- प्राथमिक (1-5) और उच्च प्राथमिक (6-8) स्कूली बच्चे वर्तमान में प्रत्येक कार्य दिवस में 100 ग्राम और 150 ग्राम खाद्यान्न प्राप्त करते हैं, ताकि उनकी न्यूनतम 700 कैलोरी की पूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
- इसमें प्री-प्राइमरी कक्षाओं के बालवाटिका (3-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे) के छात्र भी शामिल हैं।
- स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये “स्कूल पोषण उद्यान” के माध्यम से स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले पोषक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा
- योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
- यह गेहूँ, चावल, दाल और सब्जियों के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु केंद्र सरकार के स्तर पर मौजूद सभी प्रतिबंध और चुनौतियों को समाप्त करता है।
- वर्तमान में यदि कोई राज्य मेनू में दूध या अंडे जैसे किसी भी घटक को जोड़ने का निर्णय लेता है, तो केंद्र अतिरिक्त लागत वहन नहीं करता है लेकिनअब वह प्रतिबंध हटा लिया गया है।
- तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं।
- केंद्र ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और सहायकों को मुआवज़ा प्रदान करने हेतु प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली पर स्विच करने का निर्देश दिया है।`यह सुनिश्चित करेगा कि ज़िला प्रशासन और अन्य अधिकारियों के स्तर पर कोई भ्रष्टाचार न हो।
- प्रत्येक स्कूल में एक पोषण विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना है, जिसकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल में ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (BMI), वज़न और हीमोग्लोबिन के स्तर जैसे स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाए।
- योजना के क्रियान्वयन का अध्ययन करने हेतु प्रत्येक राज्य के हर स्कूल के लिये योजना का सोशल ऑडिट कराना भी अनिवार्य किया गया है, जो अब तक सभी राज्यों द्वारा नहीं किया जा रहा था।