CAR T-Cell थेरेपी डिम्बग्रंथि के कैंसर (Ovarian cancer) के लिए एक अच्छा इलाज है। CAR T-सेल थेरेपी रोगी की कोशिकाओं का उपयोग करती है। उन्हें टी-कोशिकाओं को सक्रिय करने और ट्यूमर कोशिकाओं को लक्षित करने हेतु इनको प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है।
इस थेरेपी का चूहों पर परीक्षण किया गया और इसे प्रभावी पाया गया। अंडाशय में कैंसर कोशिकाओं की इम्यूनोसप्रेसिव प्रकृति वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी बाधा थी। हाल ही में खोजी गई CAR T-Cell थेरेपी ने इस चुनौती को जीत लिया है। यह थेरेपी CD3 श्रृंखला को बदलकर काम करती है।
मनुष्यों में रक्त कैंसर का इलाज करने में यह थेरेपी पहले से ही प्रभावी साबित हुई है। डिम्बग्रंथि के कैंसर के लिए इसका परीक्षण किया जाना बाकी है। हालांकि, यह चूहों में ओवेरियन कैंसर के इलाज में प्रभावी है।
टी कोशिकाएं WBC (श्वेत रक्त कोशिकाएं) में रहती हैं। WBC प्रतिरक्षा प्रणाली का प्रमुख घटक है। WBC से शरीर बीमारियों से लड़ती हैं।
टी कोशिकाओं को एक रोगी के रक्त से लिया जाता है और फिर एक विशेष रिसेप्टर के जीन को प्रयोगशाला में T- कोशिकाओं से संयोजित किया जाता है जो रोगी की कैंसर कोशिकाओं पर एक निश्चित प्रोटीन को लक्षित करता है।
CAR T Cell थेरेपी टी-कोशिकाओं के साथ CAR को एकीकृत कर रही है। यानी CAR को टी-कोशिकाओं में इंजेक्ट करना। इस प्रक्रिया में, कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने के लिए टी-कोशिकाओं को संशोधित किया जाता है। CAR का इंजेक्शन लगाने के बाद टी-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को आकर्षित करने लगती हैं। एक बार कैंसर कोशिकाओं की पहचान हो जाने के बाद, उन्हें आसानी से नष्ट किया जा सकता है।
CAR का मतलब चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (Chimeric Antigen Receptors) है। CAR कृत्रिम टी सेल रिसेप्टर्स हैं। वे चिमेरिक हैं; मतलब दो जीन (या जीन में प्रोटीन) एक साथ जुड़े हुए हैं।
एंटीजन एक वायरस में रोग पैदा करने वाला घटक है। यहां एंटीजन कैंसर कोशिकाओं में रोग पैदा करने वाला घटक है। CAR रोग पैदा करने वाली कैंसर कोशिकाओं को आकर्षित करने में सक्षम हैं।
विशेष रिसेप्टर को काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) कहा जाता है। बड़ी संख्या में CAR T- कोशिकाएँ प्रयोगशाला में सृजित की जाती हैं और इन्फ्यूज़न द्वारा रोगी को दी जाती हैं।
CAR T-सेल थेरेपी लक्षित एजेंटों की तुलना में और भी अधिक विशिष्ट है एवं कैंसर से लड़ने के लिये रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली को सीधे प्रेरित करती हैं, जिससे अधिक नैदानिक प्रभावकारिता बढ़ जाती है। इसलिये उन्हें “जीवित दवाएँ” कहा जाता है।