जीरो शैडो डे खगोल की एक खास स्थिति होती है, जो 130 अक्षांश पर स्थित इलाकों में साल में दो बार बनती है. इस दिन हर वर्टिकल चीज की परछाई गायब हो जाती है यह घटना तब होती है जब दिन के एक खास समय पर सूर्य सीधे सिर के ऊपर होता है। यह वह दिन होता है जब खड़ी वस्तुओं की छाया गायब हो जाती है। इसी वजह से इस स्थिति को जीरो शैडो कहा जाता है |

पृथ्वी पर कई घटनाएं कभी-कभी ही होती हैं. जैसे सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण. जीरो शैडो डे की घटना भी उन्हीं में से एक है. हालांकि, ऐसी स्थिति साल में दो बार बनती है|

चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु और पुणे जैसे शहर कर्क और मकर रेखा के बीच में स्थित हैं , इसलिए यहाँ जीरो शैडो डे की संभावना होती है। 

परछाई जाती कहां है ?

ऐसा नहीं है कि इस दिन छाया बिल्कुल गायब ही हो जाती है. दरअसल, जब सूरज ठीक हमारे सर के ऊपर होता है, तो उसकी किरणे हम पर लंबवत पड़ती हैं. जिस वजह से हमारी जो परछाई होती है वो थोड़ा इधर-उधर न बनकर बिलकुल हमारे पैरों के नीचे बनती है. जिस वजह से सीधे खड़े रहने पर कोई परछाई दिखाई नहीं देती है.

यह स्थिति क्यों बनती है ?

यह विशेष स्थिति, पृथ्वी की घूमने की धुरी के झुकाव के कारण बनती है| पृथ्वी, सूर्य के परिक्रमा तल के लंबवत होने की बजाय उससे 23.5 डिग्री तक झुकी होती है| इसी वजह से हर दिन दोपहर में सूर्य हमारे सिर के ठीक ऊपर नहीं आ पाता है |

लेकिन, कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के स्थान पर पृथ्वी पर साल में दो बार ऐसा होता है, जब पृथ्वी पर सूरज की रोशनी एकदम संभवत पड़ती है. यानी  कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच के स्थानों पर साल में दो बार जीरो शैडो डे आता है|

जीरो शैडो की स्थिति हर जगह नहीं बनती है. जीरो शैडो डे ट्रॉपिक्स के बीच के स्थानों तक ही सीमित है. यह सिर्फ कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच में बनती है |

उत्तरायण और दक्षिणायन

साल भर में सूर्य के उत्तर और दक्षिण दिशा में आते जाते दिखने की स्थिति को भारतीय संस्कृति में उत्तरायण और दक्षिणायन के नाम से भी जाना जाता है|

दक्षिण से उत्तर की ओर जाते दिखने की यह क्रिया 22 दिसंबर से शुरू होती है और 21 मार्च को सूर्य भूमध्य रेखा की ठीक ऊपर आ जाता है और यही वह दिन होता है जब दोपहर को इस रेखा पर कोई छाया नहीं बनती है और पृथ्वी पर दिन और रात बराबर होते हैं. जिसे सम्पात, विषुव या इक्यूनॉक्स कहते हैं|

पृथ्वी की परिधि भी मापी जा सकती है


इस दिन को खगोलीय गणना के लिहाज से एक और महत्व है. इस दिन ( जो अलग अलग शहरों में अलग तारीखों को पड़ता है) का उपयोग वैज्ञानिक पृथ्वी की परिधि को मापने के लिए करते हैं. ऐसी गणना हमारे खगोलशास्त्री 2000 साल पहले भी किया करते थे|

इसके जरिए आज पृथ्वी का व्यास और पृथ्वी की घूर्णन की गति भी मापी जाती है. ऐसा दो जगहों पर जीरो शैडो के समय के अंतर के जरिए पता किया जाता है|

इतना ही नहीं इस खास दिन एक अलग बात और भी होती है. इस दिन सूर्य से आने वाली किरणें जब उत्तल यानी कॉन्वेक्स लेंस से जब गुजरती हैं तो वे एक ही बिंदु पर पड़ती हैं जबकि आम दिनों में ऐसा नहीं होता है. यानि इस दिन लेंस का उपयोग करना भी ज्यादा आसान और कारगर होता है|