मौलिक अधिकार – Fundamental Rights of Indian Citizens in Hindi
संविधान के भाग 3 में सन्निहित मूल अधिकार, सभी भारतीयों के लिए नागरिक अधिकार सुनिश्चित करते हैं और सरकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अतिक्रमण करने से रोकने के साथ नागरिकों के अधिकारों की समाज द्वारा अतिक्रमण से रक्षा करने का दायित्व भी राज्य पर डालते हैं। संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार। हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था
- मौलिक अधिकारों के विचार का सूत्रपात 1215 ईसवी के इंग्लैंड के मैग्नाकार्टा से हुआ
- फ्रांस में 1789 के संविधान में मानवीय अधिकारों को शामिल करके व्यक्ति के जीवन के लिए आवश्यक कुछ अधिकारों की घोषणा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की प्रथा आरंभ हुई
- 1791 ईस्वी में अमेरिका के संविधान में संशोधन करके बिल ऑफ राइट्स( अधिकार पत्र) को शामिल किया गया
- भारत में मौलिक अधिकारों को लागू करने की पहली मांग 1895 में उठी
- एनी बेसेंट ने होमरूल आंदोलन के दौरान मौलिक अधिकारों की मांग प्रस्तुत की
- 1925 ईस्वी में द कॉमनवेल्य ऑफ इंडिया बिल में भी इन अधिकारों की मांग की गई
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1927 के मद्रास अधिवेशन में इससे संबंधित संकल्प प्रस्ताव पारित किया गया
- 1928 में मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट में भी मूल अधिकारों की मांग की गई
- कांग्रेस के कराची अधिवेशन( 1931) एवं गोलमेज सम्मेलन द्वितीय महात्मा गांधी ने इन अधिकारों की मांग की
- कैबिनेट मिशन 1946 की सलाह पर मूल्य अधिकारों एवं अल्पसंख्यको के अधिकारों पर एक परामर्श समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल थे
- परामर्श समिति ने 27 फरवरी 1947 को 5 और समितियों का गठन किया जिनमें से एक मौलिक अधिकारों से संबंधित थी
- मौलिक अधिकार उप समिति के सदस्य जे बी कृपलानी, मीनू मसानी, के. टी. शाह, ए. के. अय्यर, के. एम. मुंशी, के एम पणिक्कर, तथा राजकुमारी अमृत कौर थे
- परामर्श समिति तथा उप समिति की सिफारिशों पर संविधान में मूल अधिकारों को शामिल किया गया
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण | Classification of Fundamental Rights
भारत के मूल संविधान में सात प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे समता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, संविधानिक उपचारों का अधिकार
- इनमें से 1978 ईस्वी में 44 वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया
- वर्तमान में अनुच्छेद 300( ए) के तहत संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार के रूप में व्यवस्थापित है
- अनुच्छेद 12 – मौलिक अधिकार संपूर्ण राज्य क्षेत्र में समान रुप से लागू होते हैं
- अनुच्छेद 13 – रूढ़ि, परंपरा, अंधविश्वास से यदि मौलिक अधिकार का हनन होता है तो ऐसे तत्व न्यायालय द्वारा अवैध घोषित हो सकते हैं
समता का अधिकार ( अनु.-14 से 18)| Right to Equality
- अनुच्छेद 14- कानून के सामने सभी व्यक्ति समान है कानून के समक्ष समानता बिट्रेन के संविधान से उद्धृत है
- अनुच्छेद 15- जाति, लिंग, धर्म, तथा मूलवंश के आधार पर सार्वजनिक स्थानों पर कोई भेदभाव करना इस अनुच्छेद के द्वारा वर्जित है लेकिन बच्चों एवं महिलाओं को विशेष संरक्षण का प्रावधान है
- अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक नियोजन में अवसर की समानता प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है परंतु अगर सरकार जरूरी समझे तो उन वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है जिनका राज्य की सेवा में प्रतिनिधित्व कम है
- अनुच्छेद 17- इस अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता का अंत किया गया है अस्पृश्यता की आचरण करता को ₹500 जुर्माना अथवा 6 महीने की कैद का प्रावधान है यह प्रावधान भारतीय संसद अधिनियम 1955 द्वारा जोड़ा गया
- अनुच्छेद 18- इसके द्वारा बिट्रिश सरकार द्वारा दिए गए उपाधियों का अंत कर दिया गया सिर्फ शिक्षा एवं रक्षा में उपाधि देने की परंपरा कायम रही
स्वतंत्रता का अधिकार ( अनु 19 से 22)| Right to freedom
अनुच्छेद 19 मूल संविधान में 7 स्वतंत्रताओं का उल्लेख करता है
- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अर्थशास्त्र रहित शांति पूर्ण सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता
- संगठन संस्था अथवा संघ बनाने की स्वतंत्रता
- भारत के किसी भाग में ( जम्मू कश्मीर को छोड़कर)बसने की स्वतंत्रता
- संपत्ति के अर्जन एवं व्यय की स्वतंत्रता( 44वें संशोधन द्वारा निरस्त)
- जीविकोपार्जन की स्वतंत्रता( सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1977 में उड़ीसा राज्य बनाम लखन लाल मामले व्यवस्था दी गई कि मादक पदार्थ, तस्करी तथा नशीले पदार्थ आदि का व्यवसाय जीविकोपार्जन के तहत नहीं आता है)
- हमारे संविधान में प्रेस स्वतंत्रता देने के लिए कोई विनिर्दिष्ट उपबंध नहीं है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (क) में सम्मिलित है
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मुद्रण भी शामिल है
- प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (2) द्वारा कुछ परिसीमाओं का निर्धारण किया गया है
- राज्य, प्रेस की स्वतंत्रता पर सुरक्षा, संप्रभुता, अखंडता, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार, न्यायालय अवमानना अपराध उद्दीपन आदि पर विधियां बना सकता है
- अनुच्छेद 20- कोई भी व्यक्ति प्रचलित कानूनों का उल्लंघन करने पर दंडित किया जा सकता है परंतु एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार दंडित किया जाएगा बार-बार नहीं
- अनुच्छेद 21- इन अनुच्छेद के तहत प्रत्येक व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निम्नवत तरीके से परिभाषित किया है
- सर्वोच्च न्यायालय ने सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य 1991 के मामले में अपने निर्णय में कहा कि प्रदूषण रहित जल एवं वायु का सेवन भी नागरिकों का मूल अधिकार है
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले परमानंद बनाम भारत संघ 1989 सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि कोई भी व्यक्ति दोषी हो या नहीं उसके जीवन की रक्षा की जानी चाहिए तथा बीमार एवं रोगी को चिकित्सा सुविधा मिलनी चाहिए
- अनुच्छेद 22- इस अनुच्छेद के तहत जो उपबंध दिए गए हैं उन्हें निवारक निरोध अधिनियम कहा जाता है
- पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण तुरंत बता दिया जाता है कारण न बताए जाने पर गिरफ्तार व्यक्ति जमानत के उपरांत कारण जान सकता है
- ऐसा विधान उपबंधित है कि 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करना अनिवार्य है
- विध्वंसात्मक कार्यों के विरुद्ध 7 मई 1971 को आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अध्यादेश पारित हुआ
- जून 1971 में अध्यादेश को कानून का रूप देते हुए आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम लागू किया गया
- 1970 ईस्वी में तस्करी विदेशी मुद्रा में छल आदि को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा संरक्षण एवम तस्करी निवारक अधिनियम बनाया गया
- 44 वें संविधान संशोधन के प्रतिकूल रहने के कारण MISA कानून को रद्द कर दिया गया
- विध्वंसक गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से 24 सितंबर 1983 को राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश जारी किया
- 1985 ईस्वी में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश को कानूनी हैसियत प्रदान करते हुए इसे टाडा कहा गया 23 मई 1995 को इसे समाप्त कर दिया गया
- वर्ष 2003 में आतंकवाद एवं विध्वंसक कार्यवाहियों के नियंत्रण के उद्देश्य से संयुक्त अधिवेशन में संसद ने पोटा कानून लागू किया
- संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने पोटा कानून को रद्द कर दिया
शोषण के विरुद्ध अधिकार( अनु 23 से 24)| Right Against Exploitation
- अनुच्छेद 23 – मनुष्य का क्रय विक्रय, बलात श्रम, बेगार शारीरिक शोषण किसी भी व्यक्ति का किसी के द्वारा किया जाना वर्जित है
- अनुच्छेद 24- 14 वर्ष तक के बच्चे को किसी खतरनाक कार्य में लगाना वर्जित है
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनु 25 से 28) | Right to Religious Freedom
- अनुच्छेद 25- नैतिकता, धार्मिक सुव्यवस्था तथा स्वास्थ्य के प्रति इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अंतकरण की स्वतंत्रता प्रदान की गई है
- अनुच्छेद 26- इसके तहत धार्मिक समुदाय एवं उससे संबंधित विशेषाधिकारों का वर्णन दिया गया है दान द्वारा ट्रस्ट का निर्माण एवं विकास किया जा सकता है दान की राशि से कोई भी धार्मिक संस्था स्थापित की जा सकती है दान पर कोई कर नहीं लगेगा
- अनुच्छेद 27- राज्य अपनी ओर से किसी धर्म को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित नहीं कर सकता
- अनुच्छेद 28- राज्य को पूर्णतया अंशत: किसी प्रकार से धर्म द्वारा शिक्षा देना वर्जित है परंतु धार्मिक न्यास पर आधारित संगठन इस तरह की शिक्षा दे सकते हैं जैसे मदरसा
सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार( अनु. 29 से 30) | Cultural and Educational Rights
- अनुच्छेद 29(i) ऐसे वर्ग के लोग जिन्हें भारत की भाषा या लिपि उनकी संस्कृति के अनुकूल न लगती हो वह अन्य भाषा लिपि एवं संस्कृति अपना सकती हैं
- अनुच्छेद 29(ii) – अनुच्छेद 29(i) में वर्गीकृत समूह के लोगों के साथ उनकी भाषा एवं लिपि के कारण उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाए
- अनुच्छेद 30(i) ऐसी अलग भाषा एवं संस्कृति वाले लोग अपनी भाषा एवं संस्कृति के विकास के लिए शिक्षण संस्थान स्थापित कर सकते हैं
अनिवार्य शिक्षा का अधिकार | Right to Compulsory Education
- संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2000 के द्वारा एक नया अनुच्छेद 21(ए) जोड़ा गया है
- किसके द्वारा राज्य को 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करानी होगी
- यह व्यवस्था संबंधित प्रांत द्वारा निर्धारित कानून द्वारा होगी
संविधानिक उपचारों का अधिकार( अनु. 32 से 35) | Right to Constitutional Remedies
- अनुच्छेद 32- किसी भी व्यक्ति या राज्य द्वारा मूल अधिकारों का उल्लंघन किए जाने पर उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा पांच प्रकार की याचिका जारी की जाती है जो निम्नवत है
- बंदी प्रत्यक्षीकरण- बंदी बनाए गए व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश किया जाता है बंदी बनाने के कारणों को बंदी बनाने वाले अधिकारी द्वारा साबित किया जाता है यह प्रलेख निजी व्यक्ति संगठन एवं सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध जारी किए जाते हैं
- परमादेश – इसके तहत न्यायालय किसी व्यक्ति, संस्था या अधीनस्थ न्यायालय के कर्तव्य पालन के आदेश के लिए आदेश देती है इसके द्वारा न्यायालय संबंधित प्राधिकारी को कर्तव्य पालन के लिए विवश करती है सिर्फ राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के विरुद्ध यह लेख जारी नहीं हो सकता है
- प्रतिषेध- यह लेख उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों पर कब जारी किया जाता है जब अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर अतिक्रमण का प्रयास करते हैं’
- उत्प्रेषण – यह लेख उच्च न्यायालय द्वारा तब जारी किया जाता है जब मामला गंभीर मुकदमों के अधीनस्थ न्यायालय से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करना होता है यह लेख उस परिस्थिति में भी जारी किया जाता है जब कोई अधिकरण अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर अधिकार करता है यह लेख न्याय पालिका एवं नगर निगमों पर लागू किया जाता है
- अधिकार पृच्छा – जब कोई व्यक्ति गैर कानूनी रूप से किसी पद यह अधिकार का प्रयोग करता है तो उसे इसलिए के द्वारा रोका जाता है यह लेख तब जारी किया जाता है जब न्यायालय पूर्ण रूप आश्वस्त हो जाता है कि अधिकार का दुरूपयोग कहां तक हुआ है
- संविधान सभा में अनुच्छेद 32 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा की संज्ञा दी थी
- 1967 ईस्वी से पूर्व तक यह निर्धारित था के अनुच्छेद 368 के तहत संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भाग को संशोधित करती है
- 1967 ईस्वी में सर्वोच्च न्यायालय गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामले में व्यवस्था दी कि संसद मौलिक अधिकारों का संशोधन नहीं कर सकती
- अनुच्छेद 368 में दी गई प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन करने के उद्देश्य से 24 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1971 द्वारा अनुच्छेद 13 और अनुच्छेद 368 में संशोधन करके यह निर्धारित किया गया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया तथा 24 वे संविधान संशोधन को विधिक रूप प्रदान किया गया
- 42वें संविधान संशोधन- 1978 द्वारा अनुच्छेद 368 में खंड(A) एवं(5) को जोड़कर यह व्यवस्थित किया गया कि इस प्रकार किए गए संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता
- 1980 ईस्वी में मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ मामले में यह निर्धारित किया गया कि संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायालय इस आधार पर किसी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकती है इसके साथ ही 42वें संविधान संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया
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