विनायक दामोदर सावरकर का परिचय
- विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 20 मई, 1883 को महाराष्ट्र के भागुर ग्राम (नासिक जिला) में हुआ था।
- विनायक दामोदर सावरकर को वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है।
- सावरकर की शिक्षा देश और विदेश (लंदन) दोनों जगह हुई थी।
- 1904 में सावरकर ने पूना में अभिनव भारत सभा की स्थापना की थी।
- सावरकर ने फ्री इंडिया सोसाइटी की भी स्थापना की थी।
- इंडिया हाउस नामक राष्ट्रवादी संस्था से भी सावरकर जुड़े हुए थे।
- 1909 में मदन लाल ढींगरा द्वारा लंदन में सर विलियम कर्जन वायली की हत्या की गयी। इस हत्या के तार सावरकर से जोड़े गये क्योंकि अंग्रेजों का कहना था कि हत्या में प्रयोग की गयी पिस्तौल सावरकर ने उपलब्ध करायी थी।
- सर विलियम कर्जन वायली की हत्या , नासिक कलेक्टर जैक्सन की हत्या, इंडिया हाउस संस्था से जुड़े होने इत्यादि के आरोप में विनायक दामोदर सावरकर को आजीवन कारावास की सजा सुनाकर अन्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित सेलूलर जेल भेज दिया गया।
- हालाँकि 1921 में ब्रिटिश सत्ता ने एक समझौते के तहत सावरकर को रिहा कर दिया। इस समझौते में था कि 1937 ई- तक राजनीतिक रूप से नजरबन्द रहेंगे और किसी भी प्रकार की राष्ट्रवादी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे।
- सावरकर का निधन स्वतंत्र भारत में 26 फरवरी, 1966 को मुम्बई में हुआ था।
सावरकर का योगदान
- विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे.
- विनायक दामोदर सावरकर, 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे.
- दामोदर विनायक स्वदेशी और हिंदुत्व के भी कट्टर समर्थक थे.
- सावरकर को आज के समय के हिंदूवादी राजनीतिक दलों का आदर्श भी माना जाता है.
- विनायक सावरकर ही वह प्रथम शख्स थे जिन्होंने 1857 की लड़ाई को सर्वप्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उपाधि दी थी.
- वीर विनायक एक प्रखर लेखक भी थे. उन्होंने इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ , ‘तलवार’,’लंदन टाइम्स’ जैसी पत्रिकाओं में लेख लिखे.
- सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटेन और ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था.
- सावरकर चाहते थे कि तत्कालीन भारतीय समाज में सुधार आये। इसीलिए 1920 में उन्होंने अपने भाई नारायण राव को पत्र लखिा और उसमें कहा कि जितने संघर्ष की आवश्यकता औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध है उतने ही संघर्ष की आवश्यकता जातिगत भेदभाव व छूआछूत के विरुद्ध भी है।
- सावरकर अंग्रेजों के ‘श्वेत व्यक्ति का बोझ सिद्धान्त’ के विरुद्ध थे। उन्होंने इतिहास को प्रमाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया और भारतीयों में विश्वास जगाने का प्रयास किया अर्थात् उन्होंने भारतीय इतिहास को उजागर किया ताकि जनता अपने अतीत को जाने और उनकी चेतना में जागृति आये।
- सावरकर का विश्वास था कि जब एकबार जन जागृति आ जायेगी तो अंग्रेजों द्वारा फैलाये जा रहे झूठ का जनता आसानी से सामना कर पायेगी और अपनी स्वतंत्रता का मार्ग स्वयं प्रशस्त करेगी।
- वीर सावरकर धार्मिक रीति-रिवाजों में वैज्ञानिकता के पक्षधर थे। उनका मानना था कि धार्मिक प्रथाओं को वैज्ञानिक सोच व तार्किकता के साथ जरूर देखना चाहिए।
- सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी थे जिन्होंने सर्वप्रथम बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में स्वराज की बात की। जबकि कांग्रेस ने काफी समय बाद 1929 के लाहौर अधिवेशन में स्वराज की बात की।
- सावरकर एक संयुक्त भारत के पक्षधर थे। वह चाहते थे कि अलग-अलग संस्कृति के लोग मिल-जुलकर रहें और एक ऐसा भारत निर्मित हो जो समावेशी व गतिशील हो।
- सावरकर ने इस बात पर भी बल दिया था कि हमें यूरोपीय समाज से सीखना चाहिए तथा उनकी तरह प्रौद्योगिकी पर बल प्रदान करना चाहिए।
- सावरकर अन्वेषण व नवीन विचारों को भी समर्थन देते थे। सावरकर की भारतीय सिनेमा के प्रति फ्रयूचरिस्टिक एप्रोच काफी सराहनीय थी।
- सन् 1907 में लंदन में सावरकर ने 1857 की क्रांति की स्वर्ण जयंती मनायी।
- सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया फ्रीडम स्ट्रगल, 1857’ के द्वारा यह स्थापित किया कि 1857 की क्रांति भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश सरकार 1857 की क्रांति को सेना द्वारा एक विद्रोह मानती थी।
- भारत में राष्ट्रवाद की क्रांति जगाने वालों में सावरकर प्रारम्भिक क्रांतिकारी थे। सावरकर की पुस्तक (इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल) क्रांतिकारियों के लिए एक प्रेरणास्रोत थी।
- सात बंदी सावरकर ने अपनी एक पुस्तक में सात बंदियों की चर्चा की है जो निम्नलिखित हैं-
- वेदोकटाबन्दीः वेदोकटाबन्दी से तात्पर्य है कि वेदों की कुछ लोगों तक ही पहुँच को रोका जाये अर्थात् इनका सभी लोगों को अध्ययन करने का अधिकार हो।
- व्यवसायबंदीः इसमें जन्म के आधार पर व्यवसाय निर्धारित होने की मनाही की गयी है।
- स्पर्शबंदीः इसमें छुआछूत की मनाही या बंदी की बात की गयी है।
- समुद्रबंदीः पहले भारतीय समाज में ऐसी मान्यता व्याप्त थी कि कोई यदि समुद्र पार गया तो उसका धर्म नष्ट हो जायेगा। लेकिन सावरकर ने ऐसे तर्क रखे कि समुद्र पार करने से धर्म पर कोई असर नहीं होगा।
- शुद्धिबंदीः इसके तहत हिन्दू धर्म में पुनः धर्म-परिवर्तन (Reconversion) के विरोध में कहा गया है। सावरकर का कहना था कि सभी धर्म समान हैं।
- रोटीबंदीः इसमें कहा गया है कि सभी जातियों को छूआछूत त्यागकर एकसाथ भोजन करना चाहिए।
- बेटीबंदीः इसमें अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन किया गया है।
विनायक दामोदर सावरकर के साथ जुड़े विवाद
- कुछ विद्वानों का मत है कि हिन्दू महासभा की स्थापना के साथ सावरकर ने हिन्दुत्व को एक एजेंडा के रूप में स्थापित किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक में द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिसमें उन्होंने कहा कि हिन्दू और मुसलमान कभी भी एकसाथ नहीं रह सकते, अतः उनके लिए दो अलग-अलग राष्ट्र होने चाहिए।
- लेकिन इसके विपरीत कुछ विद्वानों का मत है कि सावरकर हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उन्होंने हिन्दू महासभा के 21वें वार्षिक सम्मेलन (1939 में कोलकाता) में बोला था कि कैसे हिन्दू और मुस्लिम अपने ऐतिहासिक मतभेदों को मिटाकर एक सामाजिक संस्कृति वाले हिन्दुस्तान में साथ रह सकते हैं (एक संविधान के तहत)। यह सही है कि उन्होंने द्वि-राष्ट्र का सिद्धान्त दिया था किन्तु इसमें उन्होंने कहा था कि एक ही देश (हिन्दुस्तान) में दो पृथक-पृथक राष्ट्र (हिन्दू व मुस्लिम) होने चाहिए।
- कुछ इतिहासकारों का कहना है कि 1921 में सावरकर ने अंग्रेजों के समक्ष जब दया याचिका दी थी तो उन्हें रिहा किया गया था, इससे तत्कालीन क्रांतिकारियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। जबकि दूसरी तरफ अन्य इतिहासकारों का कहना है कि सावरकर ने दया याचिका इस वजह से दायर की थी ताकि भूमिगत होकर या गुपचुप तरीके से भारत की स्वतंत्रता हेतु क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाया जा सके।
- नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या किये जाने के तार सावरकर से भी जुड़े थे। इसकी जाँच हेतु कयूर कमीशन का गठन किया गया, जिसने सावरकर को दोषयुक्त पाया।